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के घूसे से चौंसठ दांत कैसे टूटेंगे? दांत तो आख़िर बत्तीस ही होते हैं। उसने कहा, 'मुझे पता था कि तू ज़रूर बीच में बोलेगा, इसलिए मैंने तेरे बत्तीस दांत भी इसके साथ जोड़ लिए थे।'
किन्हीं दो के बीच तीसरे का प्रवेश सदा ही घातक होता है। बस, अपना प्रयास यही हो कि तू तेरी संभाल, छोड़ शेष जंजाल। तू तेरे में मस्त रहना सीख। जिंदगी में चाहे जितनी विपरीत परिस्थिति आ जाए, मगर हर हाल में तुम अपने आपको सकारात्मक बनाए रखो। ज़िंदगी में प्रतिक्रियाओं से बचाए रखने के लिए यह अमृत मंत्र है। ___ मैंने अपनी जिंदगी में कभी भी अपनी मां के चेहरे पर गुस्सा नहीं देखा। हम पांच भाई थे, पांचों की उम्र लगभग बराबर थी। इसलिए मां को तंग किया करते थे, लेकिन उसके चेहरे पर गुस्से की हलकी लकीर भी नहीं देखी। हमें याद नहीं कि हमारी मां ने कभी हमें डांटा हो। आज वह मां साध्वी-जीवन में है, लेकिन उनका कहा टालने का साहस आज उसकी किसी भी संतान में नहीं है। उनके संस्कार हर संतान का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। ___ एक बार मैंने अपनी मां से पूछा कि मां, मैंने तुम्हारे चेहरे पर कभी शिकन तक नहीं देखी। इसका कारण क्या है ? पता चला कि अगर बड़े लोग मां को डांट देते, तो वे सोचा करतीं कि ठीक है, बड़े हैं। बड़े नहीं कहेंगे, तो कौन कहेगा? विपरीत परिस्थितियां आईं, मगर फिर भी सकारात्मक और जब कोई छोटे बच्चे गलती कर जाते, तो वे उन्हें डांटती नहीं थीं। सोचती थीं कि बच्चे हैं, बच्चों से गलती नहीं होगी, तो किससे होगी? निरपेक्ष रहें परिस्थितियों से छोटों के प्रति दया और करुणा, बड़ों के प्रति चित्त में समता और सम्मान, यही है सदाबहार शांति और सौम्यता का मंत्र । व्यक्ति का सकारात्मक रूप यही है कि व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में सदा शांत रहे, सौम्य रहे, प्रसन्न रहे, वह हर हाल में मस्त बना रहे। जो व्यक्ति अपने जीवन में प्रतिक्रियाओं से परहेज़ रखता है, वह चौबीसों घंटे सामयिक में है, समत्व में है। तब उसके चित्त में सदाबहार शांति और आनंद उसके भीतर बना हुआ रहता है।
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