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जब राम के सामने रावण का शव लाकर रखा गया, तो विभीषण, मंदोदरी सभी यही सोच रहे थे कि श्री राम इसके भी इतने टुकड़े करवाएंगे कि शायद उससे ज्यादा टुकड़े न हो सकें और उन टुकड़ों को कुत्तों-गीदड़ों के आगे फेंक देंगे, क्योंकि उसने राम की पत्नी पर गलत नज़र डाली थी, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। श्री राम खड़े हुए, उस शव को देखकर सामने गए, करबद्ध हुए और अपने शरीर का उत्तरीय उतारकर रावण पर डाल दिया। इसे कहते हैं शालीनता और मर्यादा। मंदोदरी और विभीषण की आंखों से आंसू बह निकले। ऐसा हो आदमी का बर्ताव । मैं श्री राम की शालीनता और मर्यादाओं का कायल हूं। सार बात समझ लें
सलीके का मज़ाक़ अच्छा, क़रीने की हंसी अच्छी, अजी जो दिल को भा जाए, वही बस दिल्लगी अच्छी।
रिश्तों में हो अपनापन अगला सूत्र है : रिश्तों में आत्मीयता हो । आदमी बड़े प्यार से जिए, यह मानकर कि जीवन अपने आप में प्रकृति की अनुपम सौगात है। रिश्ता बनाना सरल होता है, परंतु निभाना बड़ा कठिन है। रिश्ते भले ही कम बनाओ, कोई चिंता नहीं, लेकिन जितने रिश्ते बनाए हैं, उन्हें निभाओ। वक्त-बेवक़्त में काम आओ। यह बेवक्त ही आत्मीयता की कसौटी होता है। रिश्तों में आत्मीयता होना चाहिए, केवल औपचारिकता नहीं, टी.वी. वाली मुस्कान नहीं। अगर आप किसी आत्मीय जन के अस्वस्थ होने पर अस्पताल जाते हैं, तो ऐसा न हो कि आपने कुशल-क्षेम पूछा और पांच मिनट में लौट आए। इससे तो अच्छा होता कि आप वहां जाते ही नहीं। वहां गए हो, तो तीन-चार घंटे बैठो, इस दौरान जो भी सेवा बनती है, आप सेवा करें। चाहे उसको निवृत्त के लिए जाना हो या उसकी करवट बदलवानी हो, बिना किसी शर्म के आप उसकी सहायता करें। सुख-शांति पूछने से सुख-शांति नहीं होगी। सुख-शांति आपके सहयोगी बनने से ही आएगी।
किसी रोगी से सुख-चैन पूछने की बजाय मालूम करें कि उसे किसी चीज़ की ज़रूरत तो नहीं है। अगर उसकी स्थिति वाकई ठीक
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