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दूसरों को प्रभावित करता है । आपका व्यवहार, आपकी पहचान का आधार है ।
शालीनता का मंत्र इसलिए है कि आदमी सलीके के साथ देखे, फिर बैठे। ऐसा न हो कि वह आए और धड़ाम से बैठ जाए। बैठना है, तो शालीनता के साथ बैठो। खाना है, तो सलीके से खाओ। ऐसा न हो कि खाते समय आपके सारे दांत दिखें। किसी के प्रति अगर आंख उठाकर देखना भी है, तो इतने प्यार से देखा जाए कि उसमें सौम्यता झलके । ऐसा न हो कि दृष्टि से लोफ़र लगो । क्या आपने कभी सोचा है कि 'लुच्चा' शब्द कहां से आया है? लोचन से ही लुच्चा बना है | जो लोचन को कहीं पर भी गाड़कर देखता है, वही लुच्चा है । देखना है, तो प्यार से देखो, तरीके से देखो ।
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घर में कोई आता है, तो सलीके के साथ बात करो, बच्चों को शालीनता सिखाओ। मैं एक घर में आहार के लिए गया था कि इतने में एक बच्ची आई और मम्मी से कहने लगी, 'मम्मी, मैं जहां भी जाती हूं, छोटा भैया वहीं आकर खड़ा हो जाता है । यह भी कोई तरीका है ? वह यह बोलकर अपनी कार से रवाना हो गई। बच्चों को शालीनता सिखानी चाहिए कि जब चार लोग हमारे सामने बैठे हों, तो हम किस तरह से पेश आएं ।
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एक छोटा-सा प्रसंग है । हम सूरत में थे । कोई आवश्यक बैठक आहूत थी, जिसमें दो ऐसे आदमियों को आमंत्रित किया गया था, जिनमें से एक लखपति था, तो दूसरा अरबपति । एक हवाई जहाज़ से पहले आ गए। वह हमारे पास बैठे थे, नाम था, मोहन चंद ढड्ढा । दूसरे व्यक्ति ट्रेन से आए। वह दरवाजे तक पहुंचे होंगे कि श्री ढड्ढा उनके सम्मान में खड़े होकर दरवाज़े तक गए और उन्होंने उनके हाथ का सूटकेस खुद लेना चाहा। एक साठ वर्षीय अरबपति का पैंतीस वर्षीय लखपति के प्रति ऐसा व्यवहार देखकर मैं अभिभूत हो गया । इसे ही कुलीनता कहते हैं कि उस आदमी ने अपना पैसा, अपनी उम्र और प्रतिष्ठा को एक किनारे रखा और आए हुए व्यक्ति को खड़े होकर सम्मान दिया । सचमुच, ऐसा करके उन्होंने औरों के दिलों में अपना आदरपूर्ण स्थान बनाया ।
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