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है कि उसके फल हर किसी की पहुंच के बाहर हो जाते हैं। दूसरा पेड़ आम का होता है, जिसके फल आदमी की पहुंच के भीतर होते हैं। जब उस पेड़ के फल पकते हैं, तो पेड़ झुक जाता है। ज्ञानी की पहचान यह नहीं है कि वह घमंडी हो, वरन जो झुकना जानता है, वही ज्ञानी है। पैसे वाला वह नहीं है, जो पैसे को पाकर समाज को कुछ न समझे, पैसे वाला वह है, जो औरों के बीच में जाकर अपने आपको उनके आगे और अधिक विनम्र कर लेता है। वह व्यक्ति संपत्ति वाला नहीं है, जो किसी मंदिर में प्रतिष्ठा करवाने के लिए खुद बोली लगाए और अपने हाथों से भगवान की मूर्ति चढ़ाए। वह आदमी असली नगरसेठ कहलाता है, जो बोली स्वयं लगा लेता है, लेकिन मूर्ति किसी और के हाथों से विराजमान करवाता है। क्रोध और अहंकार : स्वभाव के दुर्गुण जो जितना झुकता है, समाज उसको उतना ही माथे पर बिठाता है और जो जितना अकड़ रखता है, वह समाज की नज़र में उतनी ही नफ़रत का पात्र बनता है। आदमी के स्वभाव के दुर्गुण दो हैं, एक है घमंड और दूसरा है गुस्सा, एक है अहंकार और दूसरा है क्रोध। जिसका स्वभाव सौम्य हो चुका है, उस व्यक्ति को तो अगर गाली भी दी जाती है, तो जवाब में बुद्ध जैसे लोग यही तो कहते हैं, 'धन्यवाद, तुम मुझे ज़रा एक बात बताओ कि अगर कोई आदमी तुम्हारे घर मेहमान बनकर आए, तुम उसे भोजन परोसना चाहो और वह यदि भोजन स्वीकार न करे, तो वह भोजन किसके पास रहेगा? इसी तरह मैं भी तुम्हारी गालियों को स्वीकार नहीं करता। अब बताओ, तुम्हारी गालियों का क्या हश्र होगा? गाली तो तब गाली बनती है, जब हम गाली को स्वीकार करते हैं। गाली को स्वीकार ही न किया, उस पर ध्यान ही न दिया, तो गाली वहीं पर खत्म हो गई। आग तब आग बनेगी, जब उस आग को और ईंधन दिया जाएगा। आग तालाब में जाकर गिरेगी, तो बुझ जाएगी। हमारा स्वभाव अगर सौम्य हो चुका है, तो हम अपने आप में सागर हो गए।'
अगर हम गाली को स्वीकार कर बैठे, तो स्वयं उलझ गए, फंस गए। इससे हमारा ध्यान उलझा, मन-हृदय उलझा। ध्यान रखें, पल-भर
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