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________________ बाहरी मुंह से दुनिया के लिए अपना उद्बोधन न दिया, उसने अपने जीवन की गहराई में क्या देखा और जाना होगा। नेत्रहीन लोग भी देख सकते हैं। आंख वाले दुनिया को जितनी रंगीन देख सकते होंगे, उससे कहीं ज्यादा इंद्रधनुषी रंगों के साथ कोई नेत्रहीन व्यक्ति दुनिया को देख सकता है। और वह देखेगा अपने भीतर की आंख से, अंतरमन की आंख से। हिंदू लोग हर सुबह जिनके भजन बड़े भाव से गुनगुनाते हैं, कभी सोचा कि उस सूरदास के पास आंखें नहीं थीं। हम आंख वाले को भूल जाते हैं, लेकिन एक नेत्रहीन व्यक्ति के भजनों को बड़े भाव के साथ गुनगुना लेते हैं। विकलांगता एक दोष जरूर है, लेकिन प्रकृति के द्वारा दिए जाने वाले अभिशाप के बावजूद अगर व्यक्ति अपना यकीन न खोए, तो कोई अभाव अभाव नहीं होता। हर अभाव हमारे स्वभाव में बदल जाता है। मैं उल्लेख करना चाहूंगा एक ऐसे हिंदुस्तानी व्यक्ति का जिसके हाथ विकलांग थे, नाम है डॉक्टर रघुवंश सहाय, जिस व्यक्ति के दोनों हाथ विकलांग थे लेकिन इसके बावजूद उसने अपने पांव की अंगुलियों का उपयोग करते हुए कई किताबें लिखीं। संसार को संगीत के बेहतरीन एलबम देने वाला बीथोवन, यह जानकर आश्चर्य करेंगे कि वह बहरा था। फ्रेंकलिन अमेरिका के वे राष्ट्रपति हुए, जो पांवों से चल नहीं सकते थे। कृपा करके अपने तन की विकलांगता का असर अपने मन पर मत होने दीजिए। मन पूर्ण रहे! मन विकलांग न हो, मन पंगु न हो, इस बात के लिए सजगता जरूरी है। ____ आदमी अगर अपनी जिंदगी में कुछ करना चाहे और वह न कर पाए, यह कैसे संभव हो सकता है। अगर सफल न हुए तो इसके जवाबदेह स्वयं हम हैं। कोई अगर सफल हुआ तो उसका जवाबदेह भी वह स्वयं है। हम अपने सोए हुए विश्वास को जगाएं, अपने मनोबल को मजबूत करें। आत्मविश्वास का ही यह परिणाम होता है कि व्यक्ति के भीतर उत्साह और ऊर्जा का संचार होता है। उत्साहपूर्वक अगर झाड़ लगाओ, तो वह झाड़ लगाना भी किसी मंदिर की सफाई करना हो जाता है और बिना उत्साह, उमंग के अगर मंदिर भी चले जाओ, तब भी वह व्यर्थ ही साबित होता है। उत्साह के साथ किया गया 105 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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