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________________ लक्ष्य बनाएं, पुरुषार्थ जगाएं जिन स तरह कोई राहगीर समुद्र के किनारे बैठकर समुद्र की लहरों को देखता है, उसी तरह मैं भी जीवन के किनारे बैठकर जीवन हारा करता हूं । जीवन चाहे मेरा हो या किसी और का, जीवन तो जीवन ही होता है । हर जीवन के साथ एक जैसी ही प्राण-धारा बहती है। सभी व्यक्ति जीवन के तयशुदा रास्तों से गुजरते हैं । जिस रास्ते से महावीर और बुद्ध, राम और रहीम, मीरा और मंसूर गुजरे थे, उसी रास्ते से हम भी गुजर रहे हैं । आइंस्टीन और एडीसन, शेक्सपियर और मैक्समूलर, अल्फ्रेड नोबल और नेल्सन मंडेला भी आख़िर हममें से ही पैदा हुए हैं । जैसे मां की कोख से हम पैदा हुए थे, वैसे ही वे पैदा हुए। जैसे हम खाते हैं, संसार भोगते हैं और मर जाते हैं, ऐसे ही उनके जीवन में घटित हुआ था । आखिर उनके और हमारे जीवन में अंतर क्या है ? उनका एक लक्ष्य था, जीवन की सुनिश्चित । प्रकृति देती है प्रतिफल हमारे तो सर्वांग संपन्न हैं, मैं उन लोगों को भी देख रहा हूं, जो शरीर से अपूर्ण या अपाहिज होते हुए भी सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचे और उन्होंने जीवन का भरपूर परिणाम पाया । प्रकृति के द्वारा दिए गए अभावों के बावजूद जो ऊंचाइयों तक पहुंचे, वे ही तो धरती पर शिखर पुरुष कहलाते हैं । सूरदास नेत्रहीन थे, पर उनकी काव्य-प्रतिभा की सारी मानवता कायल है । प्रसिद्ध विद्वान डॉ. रघुवंश सहाय वर्मा हाथ से लाचार थे, वह पैर से लेखन - कार्य करते थे । क्या यह उदाहरण हमारी सोई हुई चेतना को जगाने के लिए पर्याप्त नहीं है? जब कभी Jain Education International 9 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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