SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आपने देखा, इस धरती पर सब खाली हाथ आते हैं और खाली हाथ ही चले जाते हैं पर बीच में कितना शोरगल कर जाते हैं। कितने उपद्रव, कितनी झंझटें,यहाँ कुछ भी तुम्हारा नहीं है, फिर भी लाख झंझटें तुमने मोल ले ली हैं। जो धन तुम्हारे पास नहीं है, वह तो पराया है ही, पर वह भी तो पराया है जिस पर तुम अपनी मालकियत की मोहर लगाए बैठे हो । कहीं और से तुम्हारे पास आया और एक दिन कहीं चला जाएगा। तुम सिर्फ नाम भर के मालिक हो। ___ कहते हैं किसी व्यक्ति ने अपने विवाह की पहली वर्षगाँठ पर मित्रों को पार्टी दी। मेजें सज गईं. थालियाँ लग गयीं। तभी पत्नी ने कहा, 'जी! अन्दर आपकी संदूक में जो चाँदी के चम्मच हैं, आज उन्हें बाहर ले आइये। आपके मित्रों को उसी से भोजन करवाएँगे।' पति ने कहा, 'नहीं ! यह तो किसी भी स्थिति में सम्भव नहीं है। पत्नी ने कहा, 'क्या आपको अपने मित्रों पर इतना भी भरोसा नहीं है, कौन से वे आपके चम्मच चुरा कर ले जाएँगे!' __ पति मुस्कराया, कहने लगा, 'चुराकर तो नहीं ले जाएँगे, पर पहचान ज़रूर जाएँगे।' तुम्हारी हालत भी इससे मिलती-जुलती ही है। इसलिए जिंदगी भारभूत बनी हुई है। जिंदगी में कई भार निरर्थक ढो रहे हो, उन्हें हल्का करो और भार-मुक्त हो जाओ। अन्यथा दिन में भोजन और रात में नींद भी हराम हो जाएगी। बहुत से लोग ऐसे हैं जो सोने के लिए नींद की गोलियाँ ले रहे हैं। अथाह सम्पत्ति है फिर भी सो नहीं पा रहे हैं। उनसे पूछो वे जिंदगी की कौन-सी सार्थकता को जी रहे हैं। सुख से नींद भी नहीं ले पा रहे हो शेष बात तो बहुत दूर है। फुटपाथ पर सोने वाले भिखारी को नींद की गोलियाँ खाते हुए देखा है? सुख और दुःख की अनुभूति में आत्मा का कोई सरोकार नहीं है। सुखी और दुःखी होना हम पर निर्भर है। एक दम्पति मेरे पास आए। बातों ही बातों में पत्नी कहने लगी, मेरे पति बहुत दु:खी हैं। कोई उपाय कीजिये। मैंने उनसे दुःख का कारण जानना चाहा क्योंकि मुझे पता था उनका अच्छा व्यवसाय है, लड़के हैं, मकान है, कार है, फिर दु:ख का कारण? वे महानुभाव कहने लगे, मैंने पिछले वर्ष दस लाख कमाए थे पर इस साल पाँच लाख कमाए, अब उसे इस बात का ग़म है कि पाँच लाख कम कमाए। तुम तीन मंज़िल के मकान में रहकर सुखी भी हो सकते हो और दुःखी भी। 96 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy