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________________ आस-पास जो कुछ होता है, वह मालिक बन जाता है । वह निरन्तर हमें अपनी ओर खींचता रहता है। कोई भी चीज़ हमें खींच सकती है, हमें प्रभावित कर सकती है। कोई महिला पास से गुजरी, तुमने देखा, सुन्दर है - तुम प्रभावित हो गये। कोई खूबसूरत कपड़े पहने व्यक्ति गुजरा, तुम प्रभावित हो गये। उसकी पोशाक ने प्रभावित किया, रंग ने प्रभावित किया। बगल में से कार गुजरी, तुम प्रभावित हो गये। इसका अर्थ यह हुआ, हमारे आस-पास से जो गुजरा है हमें प्रभावित कर लेता है। पर-पदार्थ हमसे ज़्यादा बदशाली हो गये हैं, वे जब चाहें तब हमें बदल देते हैं। हमारी भाव-दशा, हमारा चित्त, हमारा मन, सब कुछ 'पर' से जुड़ा हुआ है। ध्यान पर से मुक्ति और स्व में स्व का निवास है। बुद्ध और बुद्ध दोनों एक ही जगत् में जीते हैं । अन्तर कभी जगत् में नहीं होता। वह मनुष्य के भीतर घटित होता है। बुद्ध उन वस्तुओं के बीच जीता है, इसके बावजूद उसकी आत्मा असंग बनी रहती है। बाहर के संस्कार, उसके संस्कारों को प्रभावित नहीं कर सकते। अगर निज-स्वरूप को उपलब्ध नहीं हो सके तो परिणाम यह निकलेगा कि संसार का त्याग कर दोगे और ऐसा करके परिस्थितियों को भी बदल दोगे, लेकिन अपने आपको नहीं बदल पाओगे। परिस्थितियों को जिंदगी भर बदलने के बावजूद स्वयं को बदल नहीं पाए तो बस खूटे बदल भले ही जाओ, लेकिन आखिर बँधे तो रहोगे। ___ मेरी नज़र में परिस्थिति को बदलने की कोशिश कम, स्वयं को बदलने की कोशिश अधिक की जानी चाहिए। जो सतर्क और सचेत है वह परिवेश को बदलने की कोशिश कम करेगा। उसका विश्वास बाहर पर कम और अन्तर पर ज्यादा होगा। मेरी नज़र में मनुष्य की तीन अवस्थाएँ हैं। पहली, परिस्थिति हमारी मालिक बन जाये। हम बस, सिर्फ उसके पीछे-पीछे घिसटते रहें। वह अज्ञानी की अवस्था है। दूसरी, हम होते हैं और परिस्थिति हमें प्रभावित नहीं कर पाती। यह उस व्यक्ति की परिस्थिति है जो जागरूक है, इसमें भी किंचित् अज्ञान का समावेश हो सकता है। यहाँ जागरण स्वाभाविक नहीं होगा, संघर्ष से जुड़ा होगा। अगर एक क्षण भी चूके तो वस्तु हमें प्रभावित कर लेगी। तीसरी दशा है, हम परिस्थिति को प्रभावित करने लग जायें। मेरी नज़र में यही साधना की पराकाष्ठा है। इसमें कहीं कोई प्रयास नहीं, सब कुछ अनायास। जिस पर परिस्थितियाँ प्रभावशाली नहीं हो पातीं, वह उन सबसे शक्तिशाली हो जाता है। ध्यान हमें जीवन में पहली दशा से मुक्ति दिलाता है और दूसरी दशा के मार्ग से 88 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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