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लगती है। तुलना-तुलना, दूसरे से अपनी तुलना । तुम्हारे पास साइकिल है लेकिन पड़ोसी के पास स्कूटर है तुम व्यथित हो जाते हो। हमारी तुलनात्मक आकांक्षा का कोई अंत नहीं है।
तुम तो शांत व्यक्ति को देखकर भी ईर्ष्या करने लगते हो। तुम सोच भी नहीं पाते कि उसने इतना शांत मन कैसे पा लिया। वह साधु कैसे हो गया। मैं यह सब क्यों न कर पाया। तुम तो संत की शांति, मौन पर भी ईर्ष्या और स्पर्धा करोगे।
ऐसा हुआ। एक युवक किसी संत के पास पहुँचा और बोला, 'आप तो बहुत शांत हैं और मेरी अशान्ति छूटती नहीं। मुझे इसी बात का ग़म है, इसी बात की शिकायत है।' संत उस युवक को कुटिया के बाहर लाया वहाँ चिनार का एक वृक्ष था, उसी के पास दूसरा छोटा वृक्ष भी था। संत ने कहा, 'देखो, एक वृक्ष आकाश को चूम रहा है और दूसरा बमुश्किल तीन चार फुट का है लेकिन युवक मैंने आज तक इस छोटे वृक्ष की आँख से आँसू नहीं देखे। कभी इसे शिकायत करते भी नहीं पाया कि हे परमात्मा ! मुझे तो इतना नीचा बनाया है और इसे इतना ऊँचा बना दिया। यह जैसा है, जिस स्थिति में है, अत्यन्त प्रसन्न है । इसमें भी फूल लगते हैं, फल आते हैं, हवा से हिलोरें भी लेता है पर कभी पड़ोसी से ईर्ष्या नहीं करता।' जीवन जीना है सिर्फ स्वयं के साथ जीना है, तुलनाएँ छोड़ दो। ___ ध्यान तुम्हारे जीवन में दो कार्य करेगा, एक तो निरन्तर उत्पन्न होने वाले निरर्थक विचारों से मुक्ति दिलाएगा। दूसरे, तुम्हारे जीवन में निर्विचार समाधि को उपलब्ध कराने का प्रयास करेगा। ज्यों-ज्यों निरर्थक विचार बाहर आएँगे शांत अवस्था स्वयमेव प्रवेश करेगी। और यदि तुम निरर्थक विचार से मुक्त न हो पाए तो जीवन भर अच्छा-बुरा करने के बाद भी कोरे के कोरे रह जाओगे। भीतर का पात्र यदि ज़हर से भरा हुआ है और कोई अमृत भी उड़ेल दे तो वह भी ज़हर ही हो जाएगा। पहले अपने पात्र को रिक्त, निर्मल कर दो फिर तो अस्तित्व उसे ख़ुद ही भर देगा। ___ ध्यान तुम्हें कृत्य से मुक्ति नहीं दिलाता है अपितु कर्तृत्व-भाव से मुक्ति दिलाता है। तुम संसार के सभी कार्य करते हुए भी, उन सबके साक्षी हो जाओगे। श्री चन्द्रप्रभ जी की पंक्ति है -
दीप जलेंगे बुझा करेंगे, तारों में टिमटिम होगी,
वह अखण्ड है जो साक्षी है, ज्योतिर्मयता अविचल होगी। अरे! ज्योति तो वह बुझेगी जिसमें तेल और बाती हो; यह तो बिना तेल-बाती की शाश्वत ज्योति है यह कैसे बुझ सकती है ! यह तो निधूम प्रकाश है जिसे दूसरा तो
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