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________________ बोकोजू आए और होटल की छत पर जाकर बैठे। हैरीगिल भी उनके साथ छत पर पहुँचा और उनके सामने बैठ गया। कुछ दूसरे लोग भी इकट्ठे हो गए। ध्यान की चर्चा चलने लगी कि अचानक भयंकर तूफान आया तूफान के साथ भूकम्प भी आ गया। सारी धरती डाँवाडोल होने लगी। मकान, दुकान, होटल लकड़ी के थे, इसके बावजूद भी लोग बाहर मैदानों की ओर दौड़ने लगे । बोकोजू के सामने बैठे सभी लोग इधर-उधर हो गए। यहाँ तक कि वह जर्मन विचारक भी जाने लगा। लेकिन बोकोजू तो वहीं बैठे रहे उसी मस्ती में । आँखें बंद की और जमे रहे । अचानक हैरीगिल को खयाल आया कि सब लोग तो चले गए, उस फ़कीर का क्या होगा? वह भागा-भागा वापस आया। उसने देखा होटल का पूरा भवन हिल रहा था लेकिन वह फ़कीर । वह तो वैसा का वैसा बैठा था अडिग, उसने सोचा जब फ़कीर नहीं हिल रहा तो मैं भी यहीं बैठ जाता हूँ। वह बैठ तो गया लेकिन भीतर से बहुत काँप रहा था कि बोकोजू पर विश्वास करके बैठ तो गया हूँ अगर यह मकान धराशायी हो गया तो ! हैरीगिल बेतरह पसीना-पसीना हो रहा था, बड़ा बेचैन किन्तु फ़कीर की काया तो वहाँ प्रतिमा की तरह विराजमान थी । कुछ समय बाद भूकम्प शांत हुआ और बोकोजू ने आँख खोलीं और जहाँ पर चर्चा रुकी थी वहीं से अपनी बात शुरू कर दी। चर्चा पूरी हुई तब उस जर्मन विचारक ने पूछा, 'बोकोजू ! मैंने तुम जैसा फ़कीर आज तक नहीं देखा । मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ जब भूकम्प आया तक यहाँ आपके सामने बैठे लोग इधर-उधर होने लगे, वे भागने लगे आप क्यों बैठे रहे?' बोकोजू बोले, 'मैं भी भागा था । तुम सब बाहर की ओर भागे थे, बाहर की दौड़ लगाई थी और मैं अन्दर की ओर दौड़ा था, भीतर गया था । और तुम लोगों ने जहाँ दौड़ लगाई वहाँ भी भूकम्प आ रहा था और मैं जहाँ जाकर रुका वहाँ न पहले, न बाद में और न वर्तमान में कोई भूकम्प रहा । ' हैरीगिल तब से बोकोजू का चरणोपासक हो गया । जब साधक साधना की इस दशा में पहुँच जाता है कि पृथ्वी तल पर आने वाला भूकम्प उसकी चेतना को प्रभावित नहीं कर पाता । वह अपने अस्तित्व के उस शिखर पर पहुँच जाता है जहाँ नितान्त शांति है, कोई कम्पन या आपाधापी नहीं है । यह परम आनन्द की अवस्था है। हमारे जीवन में हर पल भूकम्प उमड़ते रहते हैं। हर समय तुलनात्मक विकल्प-विचार चलते रहते हैं 1 T एक महिला का पति काला है, पर पड़ोसन का पति गोरा है। अब जब भी उसे वह गोरा दिखाई देता है उसके मस्तिष्क में अपने पति का कालापन चोट मारता है । जब-जब व्यक्ति दूसरे को खुश - प्रसन्न - आनन्दित देखता है उसके मन में चोट 78 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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