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________________ ©009 भमिका मनुष्य के उच्च विकास और विश्व के संपूर्ण भविष्य की सुरक्षा के लिए हमें उन श्रेष्ठ मार्गों को स्वीकार करना होगा, जो न केवल हमारी उच्छृखल वृत्तियों पर अंकुश लगाए वरन् हमें उस परम चेतना और पराशक्तियों से संबद्ध करे, जिससे हम जीवन की दिव्यता और परम सुख को जी सकें, धरती की भावी पीढ़ियों के लिए यह पृथ्वीग्रह स्वर्ग साबित हो सके। __ध्यानयोग एक ऐसा मार्ग है जो मनुष्य को उसकी आत्मसत्ता तो प्रदान करता ही है, समग्र अस्तित्व के साथ एकाकार करते हुए मनुष्य को उसके जन्म और जीवन की सार्थकता प्रदान करता है। मनुष्य विश्व की इकाई ही सही, लेकिन ध्यान को जीने वाला व्यक्ति संपूर्ण विश्व में अपना ही प्रतिबिंब देखता है। वह अपने से संबद्ध होकर सारे जगत् से अंतर्संबद्ध हो जाता है। संबद्धता जहाँ अस्तित्वगत हो जाती है वहीं मनुष्य की मुक्ति का आधार भी वही बनती है। ___ ध्यान ससीम में असीम का, नश्वरता में शाश्वतता का और काया में कायनात के दर्शन का आधार है। मनुष्य पंच महाभूत का पिंड कहलाता है। जबकि वह ऐसा निर्माण है जिसमें पृथ्वी भी है, वायु भी है, जल भी है, आकाश भी है। उसमें पंच महाभूत तो हैं ही वह महाचेतना का स्वामी भी है। मनुष्य माटी का दीया है, लेकिन दीया ही नहीं, दीये की ज्योति भी है। मनुष्य केवल मंदिर ही नहीं, वरन् मंदिर का देवता भी है। वह केवल बादल ही नहीं, बादल में समाया इंद्रधनुष भी है। ध्यान यानी चेतना में जीने का आनंद, ध्यान यानी चेतना की यात्रा, उस चेतना की जिसे मैंने ज्योति की संज्ञा दी, देवत्व और इंद्रधनुष का रूपक बनाया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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