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जीवन का विश्लेषण
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आत्मा, सत्य और मुक्ति- अध्यात्म के मार्ग में मनुष्य के लिए शोध के मुख्य केंद्र-बिंदु हैं । जब से धर्म की शुरुआत हुई है, मनुष्य का उनके साथ नजदीकी संबंध स्थापित हुआ है या ग्रंथों का सृजन किया गया है, तब से अध्यात्म की सारी व्याख्याएँ इन्हीं बिंदुओं के अर्स-पर्स रही हैं। अध्यात्म के जितने भी उपदेष्टा हुए हैं, चाहे वे राम-कृष्ण हों, महावीर-बुद्ध हों, ईसा-सुकरात हों- लक्ष्य सबका एक रहा है। अध्यात्म का मार्ग मात्र मंदिर में जाकर घंटी बजा लेने का नाम नहीं है या दान-पुण्य, तपस्या कर लेना भर नहीं है। अध्यात्म का अमृत मार्ग तो ध्यान, कैवल्य, संबोधि को उपलब्ध करना है, अन्तर के आनन्द और मुक्ति को उपलब्ध करना है।
धर्म और अध्यात्म के लिए शास्त्रों का सृजन किया गया और मनुष्य ने स्वयं को धार्मिक बनाने के लिए इन्हीं ग्रंथों में प्ररूपित मर्यादाओं को जीवन का धर्म मान लिया, धर्म जिसका संबंध जीवन से होना चाहिए था, जीवन तो उससे दूर होता जा रहा है, बस हमारा धर्म दिखावा और क्रियाकांड में सिमट कर रह गया है। आदमी ने ग्रंथों की पूजा, प्रभावना, उनके लिए चढ़ावे या उनके लेखन-प्रकाशन तक धर्म को सीमित कर लिया। ज्यादा से ज्यादा उन ग्रंथों को सिर पर लेकर शोभायात्राएँ निकाल लेते हो। चाहे रामायण हो, गीता हो या कल्पसूत्र हो। ये सब मात्र सोने की स्याही से लिखने के लिए नहीं हैं या काँच की अलमारियों में सजाने के लिए नहीं हैं। इन शास्त्रों में निर्दिष्ट जीवन-मूल्यों का आचमन करने के लिए है।
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