SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पता है, कैसी सामान्य चीजों से हमारी कृतज्ञता जुड़ी है ! किसी ने तुम्हें एक रुपये का रूमाल लाकर दे दिया। तुमने कहा- 'धन्यवाद'! एक गिलास पानी पिला दिया, तुमने धन्यवाद दे दिया। पर, इस बहुमूल्य जीवन के लिए...? ___ इस दुनिया में आश्चर्य की बात तो देखो कि जो मिलता है, उससे हमें कोई खुशी नहीं है, पर हाँ जो नहीं मिला, उसके लिये जीवन में शिकायत और शिकवे हैं। हमारा हाथ टूट गया, हमने परमात्मा के प्रति शिकायत करनी शुरू कर दी, शक करना शुरू कर दिया कि वह है या नहीं। लेकिन हमारे पास दोनों हाथ थे, क्या तब उस उपलब्धि के लिए परमात्मा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की? सचमुच बड़ा विचित्र है मनुष्य का मन, एक काँटा गड़ जाये तो शिकायत, पर वर्षों चले, काँटा नहीं गड़ा तो उसके लिए धन्यवाद नहीं दिया। और यह जो जीवन को देखने का हमने ढंग बना लिया है, वह हमारे उदास और दुःखी होने की तैयारी है। आज का मनुष्य नब्बे फीसदी तो इसलिए उदास है कि जीवन को देखने और जीने का लहजा ही गलत बना लिया है। जो मिला उसके लिये कहीं कोई कृतज्ञता नहीं। मैंने सुना है : एक व्यक्ति किसी शानदार घोड़े को लेकर यात्रा पर निकला।घोड़ा इतना खूबसूरत कि जो देखे वही ईर्ष्या से भर जाये। घोड़े की अद्भुत चमक, पैरों की टाप ऐसी कि हर किसी को रोमांचित कर दे। जिस गाँव से गुजरता, लोग कहते, 'घोड़ा हमें दे दो, जो चाहे सो दाम ले लो।' वह कहता, 'नहीं, इस घोड़े से मुझे प्रेम है और मैं अपने प्रेम को बेच नहीं सकता।' लेकिन लोगों की आँखें ईर्ष्या से भर गयीं उस घोड़े के प्रति, और सब मौके की तलाश में लग गये। उस रात उसने घोड़े को गाँव के बाहर वृक्ष से बाँधा और वहीं सो गया। सुबह उठा तो देखा, घोड़ा नदारद था। शायद कोई चोरी करके ले गया होगा। भगवान जाने क्या हुआ? सारे गाँव में खबर फैल गयी। वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गई। और लोग उस घुड़सवार के प्रति खेद ज्ञापन करने लगे। लेकिन आश्चर्य की बात, अचानक उसे कुछ याद आया और वह व्यक्ति गाँव की तरफ भागा, गाँव से मिठाइयाँ खरीद कर लाया और जो लोग वहाँ इकट्ठे थे, उन्हें बाँटने लगा। कहने लगा, 'भगवान को धन्यवाद दो।' लोग कहने लगे, तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने है, घोड़ा चोरी चला गया है और तुम मिठाइयाँ बाँट रहे हो, भगवान को धन्यवाद दे रहे हो। किस बात का धन्यवाद! वह मुस्कराया, बोला, यह उसी की तो कृपा है कि मैं घोड़े पर नहीं था, नीचे सो रहा था। अगर मैं घोड़े पर होता तो, मेरी भी चोरी हो जाती। यह प्रसाद उसी की अनुकंपा के लिए है।' | 33 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy