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________________ ध्यानयोग विधि और वचन ध्यान का मार्ग उनके लिए है जो अध्यात्म की पराचेतना को प्राप्त करने के लिए संकल्पबद्ध हैं। हम ध्यान के मार्ग पर आएं, ध्यान को आत्मसात् करें। इससे हम शांत मन के साधक तो होंगे ही, बुद्धि से बढ़कर उच्च प्रज्ञा के प्रकाश के अधिपति भी होंगे। जीवन में अद्भुत सुख, शांति और सौन्दर्य होगा। ___ ध्यान की चेतना को उपलब्ध करने के लिए, ध्यान की समझ को आत्मसात् करने के लिए और ध्यान का गुर तलाशने के लिए ध्यानयोग : विधि और वचन' अपने आप में जीवन-साधना का राजद्वार है। अगर किसी को साधना के पथ पर गुरु का संयोग न मिले तो यह पुस्तक उसके लिए गुरु की भूमिका अदा कर सकती है। यह किताब साधना तथा मील का पत्थर है। संबोधि ध्यान की समझ को आम लोगों के समक्ष रखने में यह किताब सहकारी है। महोपाध्याय ललितप्रभ सागर जी प्रसिद्ध चिंतक एवं गहरी प्रज्ञा को आत्मसात किए आध्यात्मिक गुरु हैं। अपनी प्रभावी प्रवचनशैली के लिए ये देशभर में लोकप्रिय हैं। संपूर्ण भारतवर्ष में शांति, सद्भाव एवं सद्ज्ञान के प्रसार के लिए इन्होंने पच्चीस हजार किलोमीटर की पदयात्रा की और मानव-जाति को बेहतर जीवन जीने की कला प्रदान की। कला के प्रसार के लिए सम्मेतशिखर तीर्थ पर म्यूजियम का निर्माण करवाया और साधना के विकास के लिए जोधपुर में संबोधि धाम की स्थापना की। अनेक श्रेष्ठ पुस्तकों का लेखन एवं संपादन, टी.वी. चैनल्स पर विशिष्ट प्रवचनों का प्रसारण और आध्यात्मिक जीवन के विकास के लिए संबोधि ध्यान-शिविरों का आयोजन इनके द्वारा होता रहा है। COPL/10310 40/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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