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________________ मिनट तक इसी तरह एकाग्रचित्त होकर प्रत्येक सहज साँस के साथ निरन्तर ओम् का स्मरण पूरी समग्रता और गहराई से जारी रखें। भृकुटि मध्य पर प्रकाशमय उज्ज्वल ओम् की आकृति देखें। मस्तिष्क को ओम् की आवृत्तियों से भर जाने दें। इस द्वितीय चरण में मन का कोलाहल शांत होना शुरू होता है और साधक के लिए आध्यात्मिक पृष्ठभूमि का निर्माण होता है। तृतीय चरण : अन्तर्यात्रा तृतीय चरण में ओम् के स्मरण के साथ श्वास की गति मंद से मंदतर करनी है। साँस धीमी हो और सहयात्री हो ओम् । इस चरण में अन्तर्मन के साथ ओम् की सहयात्रा होती है। द्वितीय चरण की तरह एक साँस के साथ एक ओम् की आवृत्ति जारी रहे, लेकिन अब सहज साँस के स्थान पर मंद साँस हो अर्थात् साँस की गति कम होती जाए। प्रत्येक साँस पर ओम् पूरी तरह फैला हुआ हो। एक भी साँस बिना ओम् को साथ लिए न आए, न जाए। लगभग पाँच मिनट तक ओम् की मंद साँस के साथ सहयात्रा जारी रहे । सहयात्रा का प्रथम भाग इस तरह संपन्न हुआ। अब साँसों की मंदगति बरकरार रखते हुए साँसों की गहराई बढ़ाएँ। साँसों के स्पन्दन ठेठ नाभि के नीचे तक भी अनुभव करें और ओम् को इस गहराई में उतारें। गहरी दीर्घ साँसों के साथ ओम् का गहरा स्मरण लगातार पाँच मिनट तक जारी रहे। ___ इस चरण में ओम् अवचेतन मन में स्वतः उतरने लगता है एवं शरीर के विभिन्न चेतना-केन्द्र सक्रिय निर्मल होते हैं। चतुर्थ चरण : अन्तर-मंथन अब श्वास-प्रश्वास को तीव्रता प्रदान करें। धीरे-धीरे साँसों की गति बढ़ाएँ और प्रत्येक साँस के साथ ओम् का गहन स्मरण करें। साँसों की गति निरन्तर बढ़ाते चले जाएँ और उतनी ही तीव्र गति से ओम् की आवृत्ति भी।ओम् और साँस, साँस और ओम् । अपने एक-एक अणु, एक-एक रोम, एक-एक स्नायु को साँसों के द्वारा ओम् की चेतना से जाग्रत करें। अनुभव करें, मानस में इस दृश्य को साकार करें कि हमारा कण-कण शुभ्र प्रकाश से चमकने लगा है और हमारे अन्तर्मन के कषाय और विकार साँस के माध्यम से तीव्र गति से बाहर फैंके जा रहे हैं। तीव्र श्वास-प्रश्वास के साथ ओम् के स्मरण को अधिकतम तीन मिनट तक जारी रखें। तृतीय चरण में ओम् अवचेतन मन की गहराई में उतरता है, जबकि चतुर्थ चरण में यह अवचेतन मन को भी शान्त कर साधक को चैतन्य से भर देता है। तन-मन | 139 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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