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________________ नासिका मूल, भृकुटि, ललाट से गुजरता हुआ शिखा/सहस्रार तक जाए। प्रत्येक स्तर पर ओंकार ध्वनि के वर्तुल प्रकंपनों को अनुभव करने का प्रयास करें। नाभि, हृदय, कंठ, कान एवं कपाल पर ओम् की अनुगूंज को सुनने का प्रयास करें। निरन्तर अभ्यास से जैसे-जैसे इंद्रियाँ अंतमुखी होने लगती हैं, प्रकम्पनों की सूक्ष्म संवेदनाओं को ग्रहण करने की क्षमता विकसित हो जाती है। नाद के प्रति अपनी सजगता बनाए रखें। नाभि, हृदय और कंठ से गुजरते हुए 'ओ' एवं भृकुटि-मध्य, ललाट और कपाल पर 'म्' का नाद होना चाहिए। अपने होश को पूरी तरह नाद के साथ जोड़ने पर ही यह संभव होगा। इसलिए पूर्ण सजगता, जागरूकता अत्यंत आवश्यक है। इस तरह साँस भरते-छोड़ते हुए पाँच बार सस्वर ओंकारनाद करें। शनैः-शनैः ओंकारनाद को यथासंभव अधिक-से-अधिक लंबा और गहरा करने का प्रयास करें । पाँच बार इस रीति से ओंकारनाद संपन्न होने पर दो बार उच्च स्वर में ओंकार का उद्घोष करें। ___ओम् की पराध्वनि और उसके प्रकंपनों के प्रति अपनी सजगता और बढ़ाएँ। इस तरह ओंकार का पाँच बार सामान्य और दो बार तीव्र स्तर से उद्घोष करने के उपरान्त ओम् की अनुगूंज प्रारंभ करें। अनुगूंज ओंकारनाद का दूसरा चरण है। होंठ बन्द हों। जीभ अचल हो। केवल अंदर-ही-अंदर ओम् का गुंजारण करें। इस अनुगूंज को नासामूल/भृकुटि मध्य पर अनुभव करें और चेतना की गहराई में उतरने दें। बाहर की किसी भी ध्वनि पर ध्यान न दें, केवल अनुगूंज पर ही अपनी पूरी चेतना केन्द्रित करें। अनुगूंज भी पहले पाँच बार सामान्य स्वर में और अंत में दो बार उच्च एवं तीव्र स्वर में संपन्न कर एकदम मौन, शांत हो जाएँ। अभी कुछ समय तक ध्वनि के प्रकंपन अनुभव होंगे। अपनी सजगता को पूरी तरह अनुगूंज के प्रकंपनों पर केन्द्रित करें । नाद की परा-तरंगें जब शरीर की प्रतिरोधिगामिनी तरंगों से एकलय होती हैं, तो शरीर में शांति प्रकट होने लगती है, यही प्रथम चरण की पृष्ठभूमि है। द्वितीय चरण : सहज स्मृति इस चरण में अंदर-ही-अंदर ओम् का मानसिक जाप करते हैं। जाप में निरन्तरता और लायबद्धता होनी चाहिए, अतः ओम् में स्मरण को सहज साँस के साथ जोड़ें। एक साँस में एक बार ओम् का मानसिक जाप करें। ओम् को ही अपने चिंतन का केन्द्र बनाएँ। कोई शारीरिक संवेदना, मानसिक विकल्प, विचार उभरें, तो उन पर ध्यान न दें, न ही उन्हें उठने से रोकें। उन्हें अपना काम करने दें पर स्वयं को उनसे पृथक् अनुभव करते हुए केवल ओम् पर चित्त को एकाग्र करें । दस 138 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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