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________________ यह मिटे, तो वह प्रकटे सातों राजकुमार मुंडित हो चुके थे। भिक्षु बनने के लिये काषाय वस्त्र भी पहन चुके थे। भगवान के सामने वे करबद्ध खड़े थे प्रव्रज्या का मंत्र सुनने के लिए। तभी सेवक वहाँ पहुँचा और बोला, 'हे राजकुमारों, तुम्हारे दिव्य मार्ग को देखकर मेरा भी मन बदल गया है। मैं भी संन्यासी बनना चाहता हूँ।' उसने भी मुंडन करवा लिया और काषाय वस्त्र धारण कर लिये। बुद्ध जैसे ही प्रव्रज्या-मंत्र सुनाने को उद्यत हुए तो राजकुमारों ने कहा, 'भगवन्, हम चाहते हैं कि आप हमें संन्यास दें, इससे पूर्व हमारे इस सेवक को संन्यास देवें।' बुद्ध ने कहा, 'तुमसे पूर्व इसे संन्यास देने का अर्थ है कि तुम लोग इसे पहले प्रणाम करोगे और यह तुम लोगों से बड़ा हो जाएगा। तुम सातों राजकुमारों को इसके सामने झुकना पड़ेगा।' राजकुमारों ने कहा, 'हम यही तो चाहते हैं । हम क्षत्रिय वंश के राजकुमार हैं और हम जानते हैं कि संत बनने के बाद भी हम अपने अहंकार को नहीं मिटा पाएँगे इसलिए आप इसे पहले संन्यास दें ताकि जिसने जीवनभर हमारी सेवा की है उसे पहले प्रव्रजित देखकर हम उसकी सेवा कर सकें और उसे प्रणाम कर सकें।' जिन लोगों के भीतर इतनी विनम्रता होती है वे वास्तव में संन्यास के हकदार होते हैं। जिनका अहंकार गिरा और विनम्रता जगी, उनके भीतर साधना और मुक्ति प्रकट हो जाती है। रज्जब रज ऊपर चढ़े, नरमाई ते जाण। रोड़ा ठोकर खात है, करड़ाई के जाण। हल्की और नरम धूल सदा आसमान की ओर उठती है, वहीं कड़क पत्थर जीवन भर पाँवों की ठोकर खाते रहते हैं। हम जब किसी के प्रणाम का जवाब आशीर्वाद की बजाय अभिवादन में देते हैं तो कुछ लोगों को अटपटा सा लगता है कि साधुओं को आशीर्वाद की बजाय प्रणाम करने की क्या जरूरत है ? लेकिन हमारी सोच है कि एक गृहस्थ किसी संत के चरणों में अपना सिर झुका सकता है तो क्या एक संत इतना भी विनम्र नहीं हो सकता कि गृहस्थ के लिये अपने दोनों हाथ जोड़ सके? अहंकार में भरकर दिये गये आशीर्वाद से 87 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003870
Book TitleChinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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