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________________ शब्द गूंजने लगे तो बाहुबली की चेतना जाग्रत हुई। उनका ध्यान भंग हुआ और वे सोचने लगे, 'आवाज तो मेरी बहनों की है। ये मुझसे यह क्या कह रही हैं कि हाथी से नीचे उतरो। अरे, मैं तो अपने पाँवों पर खड़ा हूँ, भला हाथी पर कहाँ बैठा हूँ।' बाहुबली अन्तर्मन में पुनः-पुनः चिंतन करने लगे और परिणामतः उनकी चेतना जागृत हुई। उन्होंने पाया कि उनकी बहनें सच कह रही हैं। मैं जब तक अहंकार के हाथी पर बैठा रहूँगा तब तक चाहे जीवन भर साधना करता रहूँ पर परमज्ञान प्राप्त नहीं कर पाउंगा। बाहुबली मन में विनय भाव लिये हुए अपने छोटे भाइयों को प्रणाम करने के लिये उद्यत हो गए और जैसे ही उन्होंने एक कदम आगे बढ़ाया कि उन्हें परमज्ञान और केवलज्ञान उपलब्ध हो गया है। जो कार्य बारह साल की साधना न कर पाई वह कार्य कुछ पलों की विनय भावना और नम्रता से हो गया। अहंकार के टूटने से हो गया। उन्होंने डग भरा और जीवन में भोर हो गई। मैं मानता हूँ कि यह घटना काफी पुरानी है, लेकिन यह न समझें कि अहंकार के कारण केवल बाहुबली की साधना ही अटकी थी बल्कि हमारे जीवन की साधना भी प्रभावित हो रही है, विकास अवरुद्ध हो रहा है, सम्बन्ध प्रभावित हो रहे हैं। ...तो आप यह जान लें कि कहीं न कहीं कोई अहंकार की धारा, अहंकार का बंधन और अहंकार का भाव विद्यमान है। दुनिया में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होगा जिसके भीतर लेशमात्र भी अहंकार न हो। ऐसा व्यक्ति खोजने से भी न मिलेगा। जिसके भीतर कम या ज्यादा अहंकार की रेखाएँ, भावनाएँ अथवा घमंड की सोच न हो। अहंकार के ग्राफ में थोड़ा-बहुत फर्क होता है। किसी का अहंकार बहुत ऊँचे स्तर का और किसी का सामान्य स्तर का होता है। अहंकार जीवन में तभी प्रविष्ट हो जाता है जब कोई व्यक्ति अपने जीवन की सोच सम्भालता है। वैसे तो समझ आते ही जीवन में चार ग्रंथियाँ जुड़ जाती हैं - क्रोध, मान, माया, लोभ । इनमें भी मान यानि अहंकार और क्रोध का परस्पर गहरा संबंध है। क्रोध और मान में चोली-दामन का रिश्ता है। जो गुस्सैल है, वह घमंडी भी जरूर होगा। यदि कोई घमंडी है तो आप यह मानकर चलें कि उसमें गुस्से की प्रवृत्ति अवश्य है। घमंड और गुस्सा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । ये दोनों साथ-साथ चलते हैं। 77 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003870
Book TitleChinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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