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________________ अहंकार : कितना जिएँ, कितना त्यागें ? अहंकार के हथौड़े से ताला टूटता है, पर विनम्रता की चाबी से वही खुल जाया करता है । महाशक्तिशाली बाहुबली ने संत जीवन अंगीकार कर लिया और वे जंगल में जाकर साधना में लीन हो गए। माह पर माह ही नहीं, अपितु वर्ष पर वर्ष बीत गए, लेकिन बाहुबली अपनी साधना में ही रत रहे । इतने लंबे समय तक वे ध्यान में डूबे रहे कि उनके शरीर पर लताएँ लिपट गईं, पक्षियों ने घोंसले बना लिये और सर्प भी उनके शरीर से गुजरने लगे । ऐसी कठोर तपस्या तो शायद किसी ने भी न की होगी, जितनी कठोर तपस्या अपने पाँवों पर खड़े होकर बाहुबली कर रहे थे। अनेक वर्ष बीत जाने पर बाहुबली की बहनों ने अपने पिता ऋषभदेव से पूछा - प्रभु ! हमारा यह भाई इतने वर्षों से साधना कर रहा है पर क्या कारण है कि उन्हें परम ज्ञान, आत्म-ज्ञान उपलब्ध नहीं हो रहा है। मनोविकार की दीवार भगवान मुस्कुराए और कहने लगे, 'ब्राह्मी और सुंदरी ! आत्मज्ञान पाने के लिये व्यक्ति को न तो पाँवों पर खड़ा होना पड़ता है और न ही लम्बे समय तक तपस्या से गुजरना पड़ता है। आत्म-ज्ञान पाने के लिये तो मन के परिणामों को विशुद्ध करना पड़ता है और जब तक किसी व्यक्ति के Jain Education International 75 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003870
Book TitleChinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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