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________________ आग्रह किया गया। उन्होंने कहा – 'साहब, मेरी पत्नी की बुआ का बेटा यहीं रहता है। हमें उनके यहाँ भी जाना है अगर उनके यहाँ खाना नहीं खाया तो उन्हें बुरा लगेगा।' मैंने कहा, 'जैसी आपकी मर्जी।' सांझ को वापस आए तो कहने लगे, 'साहब, हम भोजन यहीं करेंगे।' मैंने कहा, 'क्या मतलब?' थोड़े झल्लाते हुए, कहने लगे, 'साहब पता नहीं, कैसे आदमी हैं ? खाने का तो उन्होंने पूछा ही नहीं, केवल चाय कॉफी की मनुहार करते रहे। मैंने देखा कि उनके मन में सामने वाले के प्रति थोड़ी सी खटास पैदा हो गई थी। मैंने बात को सँवारते हुए कहा, 'हो सकता है कि सामने वाले ने यह सोचा होगा कि गुरुजनों के यहाँ से आए हैं तो भोजन तो करके ही आए होंगे।' कई बार व्यक्ति औरों की उपेक्षा का शिकार होकर अपने आपको अशांत कर लेता है और तनावग्रस्त हो जाता है। अगर हम किसी के द्वारा दिखाई दी गई उपेक्षा को सही अर्थ में लें तो वह हमें गुस्सा नहीं दिलाएगी अपितु हमारे स्वाभिमान को जाग्रत कर जीवन में कुछ कर गुजरने का मौका देगी। ईगो को कहें 'गो' व्यक्ति के अहंकार को जब चोट लगती है तो उसे गुस्सा आता है जब तक तुम्हारा अहंकार संतुष्ट होता रहेगा, तुम सामने वाले से खुश ही रहोगे किन्तु अहंकार को चोट लगते ही तुम गुस्सा कर बैठोगे। अहंकार क्रोध का पिता है। क्रोध का एक और भी कारण है और वह है आलोचना'। किसी ने अगर हमारे लिए विपरीत टिप्पणी कर दी तो हम तत्काल गुस्सा कर बैठेंगे। लोगों का तो काम है औरों पर अंगुलियाँ उठाना और दूसरों की बातें करना । जब भी दो-चार लोग आपस में बात करते हैं तो वे दूसरों के लिए हमेशा विपरीत टिप्पणी किया करते हैं। परिणामस्वरूप मामला सुलझने की बजाय और भी अधिक उलझ जाता है। अगर आठ लोग किसी बिंदु पर निर्णय करने के लिए एक जगह बैठे हैं और यदि वे पहले से ही सोच कर बैठे हैं कि हमें इस मामले को उलझाना है तो वे उसे कभी भी सुलझा नहीं सकेंगे। यदि वे पहले से ही उसे सुलझाने की सोचते हैं तो किसी भी बात को सुलझाने में दो मिनट लगते हैं। शांतिपूर्ण ढंग से व्या 62 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003870
Book TitleChinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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