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________________ भूलें बंद द्वार, खोजें खुले द्वार निराशावादी दृष्टिकोण वाला व्यक्ति न केवल चिंतित होता है अपितु हतोत्साहित भी हो जाता है। मैं कर नहीं सकता, मैं कुछ हो नहीं सकता, मेरा तो भाग्य ही खराब है, क्या करूँ, जहाँ हाथ डालूँ वहीं हाथ जलता है; ये सब बातें वे लोग किया करते हैं जो निराशावादी होते हैं। जीवन भर याद रखें प्रकृति की व्यवस्था जब एक द्वार बंद करती है तो दूसरा द्वार खोल भी दिया करती है। हमें बंद द्वारों को देखकर रोना रोने की बजाय जीवन में किसी खुले द्वार की खोज करनी चाहिए। जिंदगी में निन्यानवे द्वार बंद हो जाएँ तो भी हताश न हों क्योंकि प्रकृति की व्यवस्था है कि वह सौवां द्वार जरूर खुला रखती है। हमारा आशावादी दृष्टिकोण ही विफलता में भी सफलता का मार्ग खोज लेता है। आशावादी दृष्टिकोण वाले व्यक्ति पर चाहे दुःखों का पहाड़ भी क्यों न टूट पड़े, वह तो हमेशा मुस्कुराहट के साथ उन सबका सामना करता है। अगर जिंदगी में ऐसी नौबत आ जाए कि पाँव में जूते भी न हों और नंगे पाँव चलना पड़े तब भी तुम ईश्वर को साधुवाद दो कि उसने जूते नहीं दिए तो क्या हुआ, पाँव तो दिए हैं। दुनिया में लाखों लोग ऐसे हैं जिनको उसने पाँव भी नहीं दिए हैं। भगाएं, भय का भूत चिंता का दूसरा कारण है मन में बैठा हुआ भय; अनावश्यक भय । जैसे ही मनुष्य भयग्रस्त होता है, वह चिंतित भी हो जाता है। उसकी शारीरिक और मानसिक शक्ति कमजोर पड़ जाया करती है। भयग्रस्त व्यक्ति अँधेरे में रस्सी को भी सर्प मान कर भयभीत हो जाता है और निर्भयचित्त व्यक्ति महावीर की तरह साँप को भी रस्सी मान कर उसे उठा कर फेंक देता है। किसी ने फोन पर छोटी सी धमकी दे दी अथवा किसी का कोई उलटा-सीधा खत आ गया तो हम तत्काल उद्वेलित हो जाते हैं और भयभीत होकर अनिर्णय की स्थिति में पहुँच जाते हैं। परिणामतः हम सभी ओर से कमजोर पड़ जाते हैं। जब होनी को टाला नहीं जा सकता और अनहोनी को किया नहीं जा सकता तो व्यर्थ की चिंता क्यों? जो लोग 35 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003870
Book TitleChinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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