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________________ करना सरल है लेकिन राम की मर्यादाओं को जीवन में जीना बहुत मुश्किल है। कृष्ण की पूजा तो कर सकते हैं लेकिन उनके कर्मयोग को जीना दुष्कर है। बुद्ध की पूजा तो सहजता से कर सकते हैं लेकिन उनकी करुणा को जीवन में जीना सहज नहीं है। हम महावीर को मानते हैं, पर महावीर की नहीं मानते । व्यक्ति अपनी व्यवहारकुशलता, चापलूसी और चालबाजी से जीवन को ढोंग से जीना तो सीख लेता है, पर ढंग से जीना नहीं सीख पाता । मर्यादा जीवन को ढोंग से जीना नहीं, अपितु ढंग से जीना है। मर्यादा जीवन को सलीके से, व्यवस्थित ढंग से जीने की शैली है। अमर्यादित जीवन से जीवन विद्रूप हो जाता है। समुद्र अगर अपनी मर्यादा लाँघेगा तो पृथ्वी का विनाश ही होगा और सीता अपनी मर्यादा में लक्ष्मणरेखा का उल्लंघन करेगी तो उसका अपहरण ही होगा। जब-जब हम अपनी मर्यादाओं से बाहर गए हैं, जो अकरणीय था वह किया। जीवन का जो संयम था उसका अतिक्रमण किया तो संध्याकाल में इस अतिक्रमण की आलोचना लेते हैं - प्रतिक्रमण करते हैं। प्रतिक्रमण का अर्थ है वापस लौटना और अतिक्रमण है सीमा से बाहर चले जाना। जीवन जीने के लिए हमारी सामाजिक, धार्मिक व्यवस्थाएँ और मर्यादाएँ थीं लेकिन हमने उनका उल्लंघन किया और उल्लंघन से जब हम वापस लौटते हैं तो इस वापसी का नाम प्रतिक्रमण है। हमारा जीवन अगर निरंकुश, अमर्यादित, असंयमी और अविवेक से परिपूर्ण है तो हम दूसरे को कैसे जीत सकते हैं ? जो स्वयं को ही न जीत सका वह दूसरे को क्या जीतेगा? जिसने अपनी इन्द्रियों को, तृष्णाओं को, लालसाओं को नहीं जीता वह भला दूसरों को क्या जीतेगा? आप चुनाव में बेशक जीत जाएँ, युद्ध में भी भले ही विजय प्राप्त कर लें लेकिन स्वयं पर विजय पाना बेहद मुश्किल है। विजेता वह नहीं जिसने चुनाव जीत लिया, विजेता वह है जिसने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया। हजारों योद्धाओं को परास्त कर जीतना भी कोई जीतना है अगर आप अपनी तृष्णाओं, वासनाओं, कामनाओं पर अंकुश लगाकर आत्म-विजेता न बन सकें। आत्मविजय ही सर्वोपरि विजय है। Jain Education International 1311 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003870
Book TitleChinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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