SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कभी प्रतिशोध से बुझाई नहीं जाती। उसका केवल एक ही साधन है, प्रेम का साबुन और क्षमा का जल। आप जानते हैं कि महावीर के कान में कीलें क्यों ठोंकी गई थी ? ऋषभदेव ने कौनसा पाप किया था कि बारह महीने तक उन्हें भूखा रहना पड़ा? रावण ने सीता का अपहरण क्यों किया था जबकि उसके मन में सीता के प्रति कोई पाप न था? इसका कारण कुछ और था। महावीर के कानों में कीलें ठोकी गईं क्योंकि गुस्से में आकर उन्होंने पूर्व जन्म में किसी के कानों में पिघलता हुआ शीशा डलवाया था। तुम मरते हो तो कीमती चूड़ियाँ, हीरों के हार, सुन्दर बदन, सुन्दर मकान, सुन्दर कपड़े और सुन्दर दुकान यहीं रह जाती है लेकिन मरने के बाद जन्म-जन्मान्तर तक वैर-विरोध की गांठ चलती रहती है। इस गांठ को कमठ भी लेकर गया और मेघमाली के रूप में उसने पार्श्व पर उसका प्रयोग किया। रावण ने सीता का अपहरण किया क्योंकि उसकी बहिन शूर्पणखा ने उसके मन में राम के प्रति प्रतिशोध की भावना पैदा की थी। उसे ललकारते हुए कहा था- 'एक मनुष्य ने तुम्हारी बहिन की नाक काटी है, उसका अपमान किया है, क्या तुम उसके अपमान का बदला नहीं लोगे?' और इस तरह बहिन के प्रतिशोध का बदला लेने के लिए रावण ने राम की पत्नी सीता का अपहरण किया है। यह बात अलग है कि बात का प्रारम्भ छोटी-सी बात से होता है किन्तु आगे चलकर वही बात अहंकार का रूप धारण कर लेती है और फिर अहंकार 'काम' का रूप लेता है। शुरुआत में तो किसी वैर, प्रतिशोध की भावना ही होती है। जन्म न ले ले वैर की गंदी मछली वैर तो मनुष्य के मन रूपी सरोवर में रहने वाली एक ऐसी गंदी मछली है जो सारे सरोवर को गंदा कर देती है। अगर हमारे मन में वैर, कपट, कलह और कटुता है, प्रतिशोध की भावना है तो मैं कहूँगा कि हमने अपने मन के सरोवर में गंदी मछली को जन्म दे दिया है। जब तक यह गंदी मछली रहेगी तुम अपने जीवन में दुर्गंध से भरे रहोगे। वैर से वैर मिटता नहीं है। तुम अपने विरोधी को भी प्रेम दो, उसके प्रति भी दोस्ती के भाव रखो, तुम्हारी निंदा करने वाले व्यक्ति की भी तुम प्रशंसा करो तो तुम पाओगे कि एक दिन वह निंदक तुम्हारे पाँवो में गिर जाएगा। 99 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003870
Book TitleChinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy