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________________ अन्तर के पट खोल निकाल दिया था।' आदमी चौंका, उसने कहा, 'कल शाम को तो एक भिखारी आया था।' साँई बोले, ‘जिसे तुमने भिखारी समझा, वह वास्तव में मैं साँई ही था ।' आदमी ने क्षमा माँगी यह कहकर कि मैं आपको पहचान न पाया । कृपया आज जरूर आएँ। आज तो मैं आपको पहचान ही लूँगा, चाहे आप जिस रूप में भी आएँ। 96 आदमी को आज भी साँई आते हुए दिखाई न दिए । आज तो घर के बाहर कोई भिखारी भी न आया, वरना पहचानने में कोई चूक न होती । वह तो साँई की बाट जोह रहा था। इतने में ही देखा कि घर के पिछवाड़े से कोई कुत्ता भीतर घुस आया और लगा भोजन में मुँह मारने। आदमी को यह देखकर बड़ा गुस्सा आया। वह चिल्लाने लगा, 'इस कुत्ते ने तो सारा भोजन ही अपवित्र कर दिया।' यह कहते हुए उसने कुत्ते की पीठ पर दो डंडे मारे । कुत्ता दर्द से कराहता हुआ घर से बाहर भाग गया। दूसरे दिन जब वह व्यक्ति साँई को उपालंभ देने फिर गया, तो देखा कि साँई सोए हैं। उनकी पीठ पर लट्ठ की मार के दो गहरे निशान हैं। कोई शिष्य उनकी कमर पर दवा मल रहा है। साँई ने उसे देखते ही कहा, 'कुछ तो धीरे मारते भाई । ' । साँई को तुम पहचान नहीं पा रहे हो । कैसे बताया जाए कि उसका क्या स्वरूप है ! वह तो हर स्वरूप में है । आह में भी वह है और वाह में भी वह है । जरूरत है उसे समझने की। गुलाम में भी वह है और मालिक में भी । लोग फिजूल पड़े हैं काले और गोरे के भेद में। अंग्रेजों में भी वह है और अफ्रीकन में भी । ऐसा नहीं है कि काले लोगों में वह नहीं है । ऐसा नहीं है कि काले लोगों का ईश्वर काला है और गोरों का गोरा । श्वेत और अश्वेत का भेद तो कपड़े के रंग-भेद जैसा है। दिल तो दोनों के पास है । उस दिन धरती पर ही स्वर्ग उतर आएगा, जिस दिन श्वेत लोग अश्वेत लोगों में भी उसी को निहारेंगे, जिसे वे अभी अपने में निहार रहे हैं । ईश्वर रंगों में नहीं है । वह रंगों से पार है। रंग तो राग है। ईश्वर राग के पार है, वह वीतराग है, वीतद्वेष भी । ईश्वर तो हमारी भीतर की माँग है । वह हमारी आत्मा की धारणा है। उसकी कोई भौतिक तस्वीर नहीं बनाई जा सकती। यह भी कैसा व्यंग्य है कि हम अपने बनाए हुए ईश्वर के सामने खड़े होकर प्रार्थना कर रहे हैं, जबकि हमें उसने बनाया है । मात्र वाक्पटु प्रार्थनाओं से कुछ न होगा। ऊँच-नीच, गोरे- काले, गरीब-अमीर के भेद तो मानव-मन की क्षुद्रताएँ हैं । वह सब में है। सबके साथ है। उसे हमें सब में निहारना भी चाहिए। उसे मानो, तब भी वह हमारे साथ है और न मानो, तब भी वह हमसे अलग नहीं है । ईश्वर जीवित है - अगर तुम जीवित हो तो । एक यहूदी के बारे में अद्भुत घटना है। एक यहूदी बंदी था । उसे शौचालय For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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