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________________ 95 परमेश्वर हमारे पास दीवारी की तलैया बन जाएगा। जो सबसे प्यार करता है, वह सर्वेश्वर से प्यार करता है। जो सबकी सेवा करता है, वह सभी के नाम से परमेश्वर की सेवा करता है। प्यार और सेवा ही वास्तव में प्रार्थना है। यदि किसी व्यक्ति ने मंदिर में जाकर परमात्मा की प्रार्थना की और मंदिर से बाहर निकलते समय किसी भूखे-प्यासे इन्सान को देखकर उसकी सार-सँभाल न ली, तो उसकी प्रार्थना पूरी नहीं कहलाएगी। प्रार्थना पूरी हो। अधूरी प्रार्थना काम नहीं देगी। __कहते हैं, प्रभु का एक भक्त ठिठुरती रात में घर से बाहर निकला। उसने घर से दस-बीस कदम ही आगे बढ़ाए होंगे कि उसे एक भिखारी मिला, जिसके शरीर पर कोई कपड़ा न था। भिखारी गिड़गिड़ाया। उसने कहा, मैं ठंड के मारे ठिठुर रहा हूँ। भगवान के नाम पर क्या तुम मुझे कोई कपड़ा दोगे, जिसे मैं इस शरीर को ढककर कड़ी ठण्ड से अपना बचाव कर सकूँ। भक्त ने एक शॉल ओढ़ा हुआ था। उसने दिल में सोचा, इस शॉल के दो भाग हो सकते हैं। एक भाग मैं इस गरीब को दे देता हूँ और दूसरा भाग मुझे ठंड से बचाने के लिए काफी है। भक्त ने यह सोचकर शॉल के दो टुकड़े कर डाले। एक भाग गरीब को ओढ़ा दिया और दूसरा खुद ओढ़ लिया। उसी रात उसने एक सपना देखा, जिसमें अपने भगवान को आधा शॉल ओढ़े हुए पाया। हैरान होकर उसने पूछा, मालिक! यह क्या, आपने केवल आधा शॉल ओढ़ रखा है ? भगवान ने बताया, तुमने मुझे इतना ही तो दिया था। ___यह मत सोचो कि परमेश्वर कहीं कोई एक ही स्थान पर रहता होगा - मंदिर, मस्जिद, गिरजे और गुरुद्वारे में ही रहता होगा। वह उसमें भी है जिसे लोग क्षुद्र समझ लेते हैं। जरा देखो, वह ईश्वर उस विकलांग के चेहरे पर मुस्कराता हुआ दिखाई देगा और तुम हो ऐसे, जो उसकी तरफ नजर भी नहीं डाल रहे हो। साँई की पहचान करना और साँई से लगन लगाना बडी कठिन साधना है। किसी व्यक्ति ने साँई को अपने घर आने के लिए निमंत्रण दिया, मिन्नतें भी की। आखिर साँई ने आने का वादा किया। उस व्यक्ति ने बड़ा अच्छा भोजन बनाया, लेकिन दिन ढलने तक भी उसे साँई आता दिखाई न दिया। शाम के वक्त कोई भिखारी उसके द्वार पहुँचा। उसने रोटी चाही, किंतु मकान मालिक ने उसे धक्के देकर बाहर निकाल दिया। भिखारी ने कहा, 'तुम्हारे घर में काफी भोजन है। उसमें से थोड़ा मुझे दे दो।'उस व्यक्ति ने कहा, 'जो भोजन है, वह साँई के लिए है, तुम जैसे भिखमंगों के लिए नहीं।' अगले दिन उस व्यक्ति ने साँई को उपालंभ दिया, मंजूरी देकर भी न आने के लिए। साँई ने कहा, 'भैया मैं तो आया था, लेकिन तुमने मुझे धक्के देकर बाहर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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