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________________ अन्तर के पट खोल सदा नेक काम हो, यह सन्मति हमें प्रदान कर । जीवन में चाहे जैसा संघर्ष करना पड़े, पर तू मुझे उस संघर्ष से पार लगने का विश्वास और पुरुषार्थ प्रदान कर ।' हमारी यह सद्भावना, यह शरणागति ही तो 'ईश्वर प्रणिधानात् वा ' सूत्र को जीवन में चरितार्थ करती है । हम जो कुछ भी कार्य करें, उसे परमात्मा के चरणों में अपनी ओर से समर्पित किया जाने वाला अर्घ्य समझकर करें। ईश्वर को याद कर पूरे मनोयोग से उस काम को पूरा करना किसी भी कार्य को सर्वश्रेष्ठ बनाने का तरीका है। 'वर्क इज वर्शिप' - कार्य को ऐसे करो, मानो भावपूर्वक प्रार्थना कर रहे हो । हर सुबह शांति से ध्यान के लिए बैठो। पंद्रह मिनट ही सही, पर मौनपूर्वक अपने मन-मस्तिष्क में शांति का ध्यान करते हुए, परमपिता परमेश्वर से अपनी मानसिक लौ लगाओ। यह अतींद्रिय ध्यान हुआ । इससे हमारा मानसिक तमस् दूर होगा। मन को अतिरिक्त ऊर्जा और विश्वास अर्जित होगा । मदर टेरेसा रोगियों के लिए अपनी मानसिक प्रार्थनाएँ करती थी । प्रार्थना की अपनी शक्ति है । अपने मन को प्रार्थना बनाएँ और प्रार्थना को प्रभु से जोड़ें। यह समर्पण भी हुआ और संकल्प शक्ति का, मानसिक शक्ति का वर्धन भी । प्रार्थना को मैं अपनी शक्ति मानता हूँ । जिसने भी अपनी मानसिक शक्ति के साथ प्रार्थना को जोड़ा है, उसे आश्चर्यजनक लाभ हुआ है। 92 प्रार्थना में माँगने की कुछ जरूरत नहीं है। बस, मन को शांत करो और अपनी चेतना को ब्रह्मचेतना के साथ एकाकार होने दो। आधा घंटा का किया गया यह ध्यान और प्रार्थना अपने आप में जीवन का सर्वोत्तम योग है। अगर प्रभु से माँगना ही है तो वह माँगो, जिसे माँगने के लिए कभी लुकमान अपने पुत्र कहा था । - कहते हैं : प्रसिद्ध हकीम लुकमान से उसके पुत्र ने पूछा कि मालिक कभी वरदान दें, तो मैं क्या माँगूँ ? लुकमान ने कहा " परमार्थ धन, पसीने की कमाई, उदारता, लज्जा और अच्छा स्वभाव । ये पाँच मिल जाने के बाद तुम्हें छठे की जरूरत ही नहीं है।” सबको अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार मिल रहा है। इसीलिए माँगना नहीं, केवल शुक्रिया / कृतज्ञता / आनंद भाव अदा करना है। फिर भी कभी कुछ माँगने के भाव आ जाएँ, तो लुकमान की बात को दोहरा सकते हैं। एक नैतिक, पवित्र, जीवन जीना ही वास्तव में परमपिता परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ पूजा है। स्वस्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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