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प्रवेश से पूर्व
प्रस्तुत पुस्तक 'अन्तर के पट खोल' आत्मज्ञानी संत पूज्य श्री चन्द्रप्रभ द्वारा
मसूरी के नैसर्गिक वातावरण में दिए गए अमृत प्रवचनों का सार-संकलन है। यह एक ऐसी अद्भुत-अनमोल पुस्तक है जो व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति, शक्ति और मुक्ति प्राप्त करने का रास्ता प्रदान करती है।
पूज्य श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं - विश्व के प्रत्येक सफल और महान व्यक्ति की श्रेष्ठता के पीछे एक तत्त्व का हाथ अवश्य रहा है और वह है उसकी आध्यात्मिक शक्ति, आध्यात्मिक शांति, आध्यात्मिक सौंदर्य। वे कहते हैं कि अध्यात्म कोई ऐसा शब्द नहीं है जिसका संबंध किसी अलौकिक-असाधारण व्यक्ति के साथ हो। अध्यात्म तो सीधे अर्थ में अपने में अन्तर्निहित मानसिक और चैतन्य-शक्ति के साथ एकाकार होना है।
श्री चन्द्रप्रभ का यह वक्तव्य अत्यन्त प्रेरक है कि अध्यात्म को आत्मसात् करने के लिए हमें किसी गुफा में जाने की जरूरत नहीं है। केवल स्वयं को शांतिमय
और आनंदमय बनाने की मानसिकता तैयार करने की आवश्यकता है। हमारी साँस हमारे भीतर-बाहर का सेतु है, इसलिए जीवन की गहराई में उतरने के लिए प्रथम चरण में ओम्' मंत्र के साथ साँसों को लंबा-गहरा करने का, हर साँस के साथ स्वयं को एकलय करने का अभ्यास किया जाना चाहिए। जैसे-जैसे साँसों के साथ एकलयता सधती चली जाती है, शब्द, संकल्प-विकल्प, विचार, मंत्र स्वत: मौन होते चले जाते हैं। शरीर, मन और प्राणों में सहज शांति, आरोग्य और आनंदमय स्थिति बनने लगती है और तब रूबरू होने लगते हैं हम स्वयं की सूक्ष्म जीवनी शक्ति से अपनी अंतश्चेतना से। उसी से खुलते हैं फिर प्रभुता के द्वार । व्यक्ति अनुभव करने लगता है तब स्वयं में अद्भुत-अपूर्व दशाएँ। तब मन तो हो जाता है मौन और चेतना करने लगती है पल-पल अहोनृत्य।
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