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अन्तर के पट खोल
तुम्हें दस पैसे दूंगा।'
___घर केवल एक मील दूर था। शेखचिल्ली तुरंत तैयार हो गया। जैसे ही उसने घी का घड़ा सिर पर रखा और कदम बढ़ाए कि उसके मन में तरह-तरह के विकल्प उमड़ने लगे। वह कल्पनाओं में खो गया। हर कदम पर उसके दिवा-स्वप्नों के पर निकलने लगे। वह ऊँचा, और ऊँचा उड़ने लगा।
वह सोचने लगा, इस काम से मुझे दस पैसे मिलेंगे, मैं उससे एक बकरी खरीदूंगा। बकरी मुझे खूब दूध देगी। दूध बेचकर मेरे पास बहत सारे पैसे हो जाएँगे। उससे मैं एक घर बनवाऊँगा। एक सुंदर-सी पत्नी लाऊँगा। फिर मेरे बच्चे होंगे। तब तक मेरे पास छोटी-सी दुकान खोलने के लिए पैसे हो जाएंगे। मैं जब अपनी दुकान में बैठा होऊँगा, मेरा बेटा मुझे भोजन के लिए बुलाने आएगा, पर मेरे पास तब समय कहाँ होगा। ग्राहकों की भीड़ होगी, मैं काम में व्यस्त होऊँगा। तब मैं सिर हिलाकर ही उसे कहूँगा कि नहीं, अभी नहीं, बाद में।
बेचारा शेखचिल्ली। जैसे ही उसने मना करने के लिए सिर हिलाया कि घी का घडा सिर से जमीन पर गिर पड़ा। घी मिट्टी में बिखर गया। सेठ ने उसे डाँटते हुए कहा, तूने घी का घड़ा गिराकर मेरा धंधा चौपट कर दिया। शेखचिल्ली बोला, सेठ, मुझे अफसोस है, पर घी का घड़ा क्या गिरा, मेरा तो सारा घर-संसार ही चौपट हो गया।
वृत्तियों, विकल्पों और कल्पनाओं से घिरा यह मन, यह चित्त यों ही महल बनाता रहता है। यही मन है जो रावण की सोने की लंका बनाता रहता है, पर जैसे सोने की लंका जलकर नष्ट हो गई, वैसे ही इस संसार में मन के द्वारा रचा गया संसार भी अनित्य है। जिसने अनित्य को अनित्य रूप जाना और नित्य को नित्य रूप, उसी के मन में शांति है, वही निवृत्ति ओर मुक्ति का स्वामी हो सकता है।
यही कारण है कि वृत्तियों में प्रमुख वृत्ति विकल्प ही मानी जाती है। जो निर्विकल्प हो गया, वह सिर्फ विकल्पों से ही मुक्त नहीं हुआ, अपितु वृत्तियों की धारा से ही मुक्त हो गया क्योंकि आखिर चाहे प्रमाण-वृत्ति हो या विपर्यय, सब विकल्प ही है।
विपर्यय-वृत्ति में विद्यमान वस्तु के स्वरूप का विपरीत ज्ञान होता है और विकल्प-वृत्ति में वस्तु का तो कहीं कोई अता-पता नहीं होता। सिर्फ शाब्दिक कल्पना से ताने-बाने गुंथे जाते हैं। कैसा मधुर व्यंग्य है कि नग्नता के लिए भी चर्खे पर रूई काती जा रही है। विकल्प केवल संसार के ही नहीं होते, संन्यास के भी होते
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