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________________ 53 वृत्ति, वृत्ति-बोध, वृत्ति-निरोध सुना रहा है और तुम हो ऐसे जो गीत को लोरी मान रहे हो। खाट के पालने में लला की तरह बेसुध सो रहे हो। हम जरा सँभलें। जब तक स्वयं कुछ न हो जाएँ, तब तक वही होने दें, जो सद्गुरु चाहता है। सद्गुरु वह, जो पहुँचा है। सद्गुरु वह, जो ज्योति को उपलब्ध हुआ है। सद्गुरु वह, जो चित्त की उठापटक से उपरत हुआ है। जब तक हम उपरत न हों, तब तक गुरु का सान्निध्य, गुरु की संगत, गुरु का मार्गदर्शन, गुरु के शब्द हमारे लिए पुन:-पुन: गंगा-स्नान करने जैसा है। वृत्ति का एक और स्थूल रूप है, जिसे विपर्यय कहा जाता है। विपर्यय अज्ञान है। जो जैसा है, उसके बिल्कुल विपरीत मान लेना विपर्यय है, जैसे सीप में चाँदी का अहसास होता है, साँप रस्सी की भाँति दिखाई देता है। वह मिथ्या ज्ञान है, अविद्या है, माया है। रस्सी को सर्प मानोगे, तो यह अज्ञान उतना खतरनाक नहीं होगा, जितना साँप को रस्सी मानकर पकड़ लेना। विपर्यय चित्त की वृत्ति क्लेशपूर्ण है। यदि प्रत्यक्ष प्रमाण के आधार उपलब्ध हो जाएँ, तो बोधि के द्वार उद्घाटित हो सकते हैं। चित्त की एक सबसे भयंकर और खतरे से घिरी वृत्ति है – विकल्प। विकल्प शब्द का अनुयायी होता है। वास्तव में जिसका विषय ही नहीं है, वही विकल्प है। शब्द के आधार पर पदार्थ की कल्पना करने वाली जो चित्त-वृत्ति है, वह विकल्पवृत्ति है। चित्त के विकल्प ही स्वप्न बनते हैं। जिसका न कोई तीर है, न तुक्का: कोई ओर है, न छोर; उसे दिमाग में चलते रहने देते हो, यही तो मनुष्य के लिए अशांति और बेचैनी भरा कोलाहल है। __ स्वप्न मात्र असत्य है। स्वप्न का सत्य असत्य से भी खतरनाक है। स्वप्न चित्त का मायाजाल है। विकल्पों की उधेड़बुन का नाम ही स्वप्न है। स्वप्न अनिद्रा है, स्वप्न चित्त की बेलगाम दौड़ है। __आदमी सिर्फ रात में ही सपने नहीं देखता, दिन में भी स्वप्न-भरी पहाड़ी पगडंडियों पर विचरता है। दिन में स्वप्न विकल्प बन जाते हैं और रात में वही विकल्प स्वप्न के पंख पहन लेते हैं। स्वप्न तो दिन में भी ले रहे हो, पर आँखें रोजमर्रा की जिंदगी में इस तरह लगी हैं कि वे स्वप्न नहीं देख पातीं। वे स्वप्न दबे हुए स्वप्न हैं। रात को जब खाट पर आराम से सोते हो, तब वे फुरसत के क्षणों में स्वप्न की साकारता ले लेते हैं। कहते हैं : शेखचिल्ली दैनिक मजदूरी पर काम किया करता था। वह गाँव भर में चक्कर लगाकर अनोखे-अनोखे काम ढूँढा करता। एक दिन एक सेठ ने कहा कि 'मेरा दस किलो घी मेरे घर पहुंचा दो, तो मैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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