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वृत्ति, वृत्ति-बोध, वृत्ति-निरोध
मन की वृत्तियों पर विजय प्राप्त करना संसार की सबसे बड़ी आत्म-विजय है।
चत जीवन की अत्यंत सूक्ष्म संहिता है। यह शरीर और मस्तिष्क की सूक्ष्म
अंतर-शक्ति है। इसका निर्माण सूक्ष्मतम परमाणुओं के जरिए हुआ है। इसलिए चित्त वास्तव में परमाणुओं की ढेरी है। जितने परमाणु, उतने ही चित्त के अभिव्यक्त रूप। परमाणुओं का क्या, सुई की नोक में अनगिनत परमाणु समा सकते हैं। इस दृष्टि से चित्त के परमाणु अनंत हैं। रेगिस्तान के रेतीले टीलों की तरह यह सटा-बिखरा पड़ा है। रेगिस्तान का हर कण टीले की तलहटी पर भी स्वतंत्र है और उसके शिखर पर भी। हमारा चित्त भी ऐसा ही है। चित्त के सारे परमाणु एक जैसे ही हों, यह कोई अनिवार्य नहीं है। चित्त के हजार जाल हैं। मकड़जाल भी और मायाजाल भी। इसका अपना तिलिस्म है। समान और समानांतर - दोनों संभावनाओं को यह अपने गर्भ-गृह में समेटे रख सकता है। देख नहीं रहे हो, जीवन कितने विरोधाभासों से भरा है। खट्टा-मीठा, तीखा-फीका, गुस्सैल-स्नेहिल। और इन सारे विरोधाभासों का सम्मेलन स्वयं हमारा चित्त है।
हमारे हिस्से के, सब ख्वाब बँटते जाते हैं।
वो दिन भी कट गए, यह दिन भी कटते जाते हैं। चित्त के द्वारा की जाने वाली हर पहल नए निर्माण का संकल्प है, किंतु उसका प्रत्येक निर्माण स्वयं उसी के लिए चुनौती है। आखिर जीवन के चौराहे पर एक ही मार्ग से यात्रा की जा सकती है, पर मनुष्य के लिए सबसे बड़ी समस्या यही है कि वह चौराहे के चारों मार्गों को एक साथ नाप लेना चाहता है। नतीजतन उसका जीवन आपाधापी के गलियारों में भटकता रहता है। वह चित्त और मन की उधेड़बुन में खोया रहता है।
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