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________________ 34 अन्तर के पट खोल हैं आत्मा के अनुभव। ध्यान सिर्फ यही रखना कि, बीच में फिसल मत जाना, प्रमत्त मत होना, अभी हमें और तल पार करने हैं। गहराइयाँ तो असली अब पानी हैं। जीवन के कई तल हैं और जीवन के प्रति सजग होने वालों को उन्हें ध्यान में लेना चाहिए। जीवन का विज्ञान भी प्रयोगों में विश्वास रखता है। अंतर्ज्ञान के प्रत्यक्ष हुए बिना वह सारे भरोसों को बैसाखियों का सहारा मानता है। अध्यात्म के विज्ञान में उन तलों को प्रकाशित किया गया है। बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ति और परा-जीवनविज्ञान के ये चार शिखर हैं। जैसे यमुनोत्री से गंगोत्री ऊपर और गंगोत्री से गोमुख, गोमुख से कैलास ऊपर है, परम है, वैसे ही हैं ये चार तल। पहला तल है बैखरी का - बोलने का। आदमी खूब बोलता है, किंतु वह रोजाना बोल-बोलकर भी वही बोलता है जिसे वह कई बार बोल चुका है। मनुष्य अस्सी फीसदी वही बोलता है, जो बोला जा चुका है। तुम अपनी पत्नी से प्रेम की जिस ढंग से बात करते हो, तुम्हारा मित्र भी अपनी पत्नी से वैसी ही या उससे मिलती-जुलती बातें करता है। माता-पिता भी वैसा ही करते थे। आखिर शब्द सीमित हैं। लहजा बदलेगा, मूल में तब्दीली नहीं होगी। हर संवाद भाषा का पिष्टपेषण है। इस तरह आदमी ‘आटे' को ही बार-बार पीसता रहता है। राजनेताओं के भाषण सुन लो। झूठे आश्वासन और जोशीले भाषण - इसी में उनकी जिंदगी खपत होती है। एक मंत्री मेरे पास आया करते थे। चुनाव का माहौल था। एक दिन शाम के वक्त थके-माँदे मेरे पास आए। कहने लगे, सुबह से अभी तक दस ही मीटिंग हो पाई हैं और पाँच दिन बाद चुनाव है। दस जगह भाषण दे चुका हूँ, अभी चार जगह और संबोधन करना है। बोलते-बोलते उनका गला फट चुका था। मैंने पूछा, दस जगह ? एक-सा भाषण देते हो या जुदा-जुदा। कहने लगे - भाषण तो एक ही है, सिर्फ स्थान बदल जाते हैं। बैखरी वक्तव्य की पुनरावृत्ति है। पता है, लोकोक्ति कैसे बनती है ? जो बात लंबे समय से लोगों की जुबाँ से गुजरती है, वही लोकोक्ति है। एक ही बात को सब दोहरा रहे हैं। इसलिए अपनी बात को सारगर्भित रूप दें। उतना ही बोलें जितने से काम चल सकता है। सत्य तो यह है कि लंबे वक्तव्य की बजाय छोटे वक्तव्य अधिक प्रभावशाली होते हैं। साहित्य-मनीषा कहती है- वाक्यं रसात्मकं काव्यम्। रसात्मक वाक्य ही काव्य है। जो व्यक्ति चौबीस घंटे में बारह घंटे मौन रहता है, उसकी वाणी सघन ऊर्जा से प्रतिष्ठित होती है। मितभाषी के हर वक्तव्य की प्रतीक्षा रहती है, उसका सम्मान होता है। दो पेज के पत्र की बजाय दो पंक्ति का तार अधिक प्रभावी होता है। तार में हर शब्द पर पचास पैसे लगते हैं, इसलिए आदमी शब्दों की बचत करता है। जितना अधिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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