SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 122 अन्तर के पट खोल वह सार तत्त्व को पा लेता है। फूलों का सार तो इत्र है। जिसने इत्र बटोर लिया, उसने ज्ञान पा लिया। जिसने केवल फूल ही बटोरे, वह अंधेरे में ही रहा। उसने सार तो छोड़ ही दिया। अनुभव बटोरना ही काफी नहीं है, अपितु उनसे सार तत्त्व भी निकालना जरूरी है। जिसने सार पा लिया, उसने जीवन का वास्तविक मूल्य पा लिया। दुनिया भर का स्वाध्याय-अध्ययन करने के बाद, पांडित्य पाने के बाद भी लगता है कि जीवन में मौलिकता यही है कि आदमी अपने चारों तरफ बिखरे सत्यों को भी समझे। यदि भगवान पुकारेंगे, तो रणभेरी तो बज उठेगी, मगर उस रणभेरी को वही समझ सकेगा, जो सार तत्त्व पाने की क्षमता रखता होगा। शास्त्रों में 'वज्ररेख' नामक एक हाथी का जिक्र आता है। यह हाथी काफी बलवान था। सौ वीर योद्धा भी उसके आगे नहीं टिक सकते थे। वह कोशल नरेश का हाथी था। अनेक युद्धों में उसने कौशल दिखाया था। एक सीमा के बाद तो सभी बूढ़े होते हैं। किसी बूढ़े व्यक्ति को लाठी का सहारा लेकर चलते देखकर उस पर हँसना मत। किसी की अर्थी देखकर दया मत खाना। हमें तो अपने भीतर जागना है। शाम ढल गई है। नींद पूरी हो गई है। एक दिन तो ऐसा भी आएगा, जब जीवन के चारों और अंधकार प्रभावी हो जाएगा। जिसे आप मौत कहते हैं, वह यही अंधकार है। यह अंधकार रोज-ब-रोज आता है और एक दिन आदमी महा-अंधकार में डूब जाता है। वह हाथी भी अब बूढ़ा हो चला था। उसकी हालत देखकर हर व्यक्ति सोचने लगा कि अब यह बूढ़ा हो गया है। उस हाथी के प्रति सब लोगों के मन में सम्मान था। वह हाथी भी बड़ा जीवट वाला था। एक दिन वज्ररेख घूमते-घूमते शहर के बाहर एक तालाब के किनारे पहुंच गया। तालाब में पानी काफी कम हो गया था और दलदल-सा बन गया था। बुढ़ापे के कारण हाथी की आँखें भी कमजोर हो चुकी थीं। उसने पानी पीने के लिए कदम आगे बढ़ाए, तो वह दलदल में फँस गया। वह दलदल से निकलने का जितना प्रयास करता, उतना ही और अधिक अंदर धंसता जाता। लोग एकत्र होने लगे। उसे बाहर निकालने के कई प्रयास भी किए गए, पर सभी लोग भरी आँखों से हाथी को मरता हुआ देखने लगे। उस बलवान हाथी का ऐसा अंत उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था। अचानक उन्हें अपने पुराने महावत की याद आई। शायद वह कोई रास्ता सुझा दे। ___ महावत आया। वह हाथी को देख मुस्कराया और बोला – ‘आप लोग इस हाथी को नहीं जानते।' उसने तत्काल आदेश दिया कि रणभेरी बजाई जाए। इधर रणभेरी बजी, उधर हाथी के बेजान-से शरीर में हलचल मची। हाथी ने अपनी सारी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy