SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शांति का मार्ग : वर्तमान की अनुपश्यना वह हर कार्य स्वीकार्य है, जिससे मन में शांति घटित हो; वह हर कार्य त्याज्य है, जो अशांति का निमित्त बने । बहुत साल पहले की बात है। मैं जीवन के उन तत्वों पर भी अपने वक्तव्य दे करता था जिनका कि मुझे स्वयं कोई प्रत्यक्ष अनुभव नहीं था। वह जो कुछ बोलता, वह किन्हीं और किताबों को पढ़ - बाँच कर कहा गया परिणाम होता । एक दिन मेरी अंतरात्मा ने मुझसे पूछा कि जो तुम कह रहे हो, क्या वह ज्ञात सत्य है? आत्मा और परमात्मा के बारे में ऊँचे वक्तव्य देना कठिन होते हुए भी आसान है, पर उनका अनुभव होना, हाँ, यही साधना है । नीलगिरि की घाटियों में रहने वाली एक पवित्र योगिनी ने उन दिनों मुझसे कहा था कि ठीक एक साल बाद आपको जीवन में पहली योग- शक्ति प्राप्त होगी । मैंने तब उस योगिनी की बात को महज 'बात' भर समझा, लेकिन जब अपने हम्पी के प्रवास और साधना-काल के दौरान ऐसा हुआ, तो बात, बात न रही; बात भी किसी रहस्य की पूर्वानुभूति हो गई । मैं यह बड़ी सहजता से अनुरोध करूँगा कि व्यक्ति का पहला लक्ष्य और पहला पुरुषार्थ मन की शांति से जुड़ा होना चाहिए। हम जीवन के चाहे जैसे लक्ष्य बनाएँ, पर जीवन के हर सहज और कठिन दौर में इस बात का शाश्वत बोध रहे कि कहीं हमारे मन की शांति खंडित न हो जाए। वह हर कार्य स्वीकार्य है जिससे मन में शांति घटित हो । वह हर कार्य त्याज्य है, जो हमारे लिए अशांति का निमित्त बने । मन की शांति से बढ़कर कोई स्वर्ग नहीं है। मन की अशांति स्वयं ही नरक है। हमें हर हाल में मन की शांति का स्वामी होना चाहिए। आत्म-प्राप्ति या परमात्म-प्राप्ति नंबर है। नंबर एक में है मन की शांति । मन की स्वार्थ और अज्ञान - रहित निर्विकार दशा ही शांति का मूल मंत्र है। हम अपने मन को पड़तालें, जीवन के प्रति बहुत सहज व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy