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वजीर की हर सलाह पर सम्राट ने अपनी समस्या संत के सम्मुख रखी। संत ने कहा-सम्राट, मैं तो नहीं जानता कि किस धर्मग्रंथ का कौन-सा सार हैं। मेरे गुरु ने अपनी मृत्यु से पहले मुझे एक बीज-मंत्र दिया था। वह मंत्र मेरे हाथ पर बंधे हुए इस तावीज में है। मुझे गुरु ने कहा था कि संसार के सारे धर्मों का सार, जीवन के समस्त सत्वों का सत्व इस तावीज में है। राजन, अगर तुम चाहो तो यह तावीज ले सकते हो। सम्राट प्रसन्न हुआ। वह उस तावीज को खोलने के लिए उतावला होने लगा। संत ने कहा-तावीज तो मैं तुम्हें दे रहा हूं, मगर मेरी एक शर्त है। शर्त यह है कि तावीज को तुम तभी खोलोगे, जब तुम अपने आपको अकेला, निःसहाय और परम व्यथा से घिरा हुआ पाओ। सम्राट ने संत को शर्त की अनुपालना का आश्वासन दिया और तावीज ले लिया।
कुछ अरसे बाद एक ऐसा संयोग बना कि शत्रु देशों ने मिलकर सम्राट पर आक्रमण किया। सम्राट युद्ध में परास्त हो गया। सम्राट अपने घोड़े पर सवार होकर वहां से बच निकला। सम्राट घोड़े को जंगल, नदी-घाटियों से दौड़ाता हुआ चला जा रहा था और पीछे शत्रु-पक्ष के सैनिकों के घोड़ों की टापों की आवाजें भी लगातार आ रही थीं। सम्राट को तावीज की याद हो आई। उसने सोचा-यह मेरे जीवन का परम एकाकीपन है, निःसहाय अवस्था है। अब मुझे यह तावीज खोलना चाहिए। उसने घोड़े पर सवार रहते ही तावीज को खोला और पढ़ा। लिखा था-यह भी बीत जाएगा। इतना-सा धर्म-सार पढ़कर वह चौंक गया। मैं कल तक सम्राट था, वह भी बीत गया । आज मैं जंगल में असहाय खड़ा हूं, पर यह भी बीत जाएगा। धीरे-धीरे शत्रुओं के घोड़ों की टापों की आवाजें आनी बंद हो गईं। शायद वे किसी और रास्ते पर चले गए थे। सम्राट मुस्कराया और कहने लगा तो यह भी बीत गया।
पराजित सम्राट ने अपनी शक्ति फिर बटोरी, सैनिकों को तैयार किया और हमला कर दिया। सम्राट ने विजय हासिल की। वह फिर सम्राट बना। उसका फिर से राज्याभिषेक होने लगा। उसे तावीज की याद आई-तो यह भी बीत जाएगा? सभी अचंभित थे कि इस खुशी भरे माहौल में सम्राट के चेहरे पर यह शिकन! उन्होंने सम्राट से कारण पूछा। सम्राट ने कहा-क्या यह बीत नहीं जाएगा। कहते हैं, तब सम्राट के जीवन में बोध-दशा जाग्रत हुई, सुख-शांति जाग्रत हुई। उन्होंने जान ही लिया कि भाव की दशा हो या अभाव की; अनुकूलता हो या प्रतिकूलता-जहां दोनों स्थितियों में समानता है, वहीं पर व्यक्ति मुक्ति को जीता है।
पिछले साल मुझे बीकानेर जाना पड़ा। वहां एक शख्स हैं-छल्लाणी। आकार-प्रकार से पुरुष हैं, अस्सी वर्षों का आदमी है, लेकिन विगत बीस वर्षों से महिलाओं के वस्त्र पहनता है। एक पुरुष अगर महिलाओं के वस्त्र पहने तो स्वाभाविक है, लोग उसे छेड़ेंगे, वह जिधर से गुजरेगा लोग उसे चिढ़ाएंगे। मेरा उस आदमी से संपर्क
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