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________________ है इस बात से कि मैं अब तक अपने आपको क्या-क्या समझता रहा! गीता में कृष्ण कहते हैं कि तू यह मानना ही छोड़ दे कि जिनसे तू युद्ध कर रहा है, वे तेरे चाचा, मामा, ताऊ या पितामह हैं। तू अपने आपको देह मानता ही क्यों है? देह मानेगा, तो स्वाभाविक है कि ये लोग भी तुझे चाचा, मामा, ताऊ नजर आएंगे। तू तो अपने आपको मेरा स्वरूप और आत्मा-मात्र समझ। कृष्ण ने अर्जुन से जो कहा, आखिर जब उसने भगवान का वास्तविक रूप देखा, तो वह भी कह उठा, कि अहो! आश्चर्य है, मैं केवल चैतन्य मात्र हूं! रास्ते से गुजर रहे संत पर जब किसी ने लाठी का प्रहार किया, तो उसके हाथ से लाठी गिर पड़ी। संत ने लाठी उठाई और वापस लौटानी चाही। मारने वाला व्यक्ति चकित हो उठा। क्या मारने वाले के प्रति यों साधुवाद! संत ने कहा, मैं जिस पेड़ के नीचे से गुजर रहा हूं, अगर उसकी टहनी मुझ पर गिर पड़ती तो! वह संयोग ही तो कहलाएगा। टहनी और लाठी, दोनों को ही जहां संयोग मान लिया जाता है, वहां मुक्ति तो स्वतः जियी जा रही है उसके लिए हेय और उपादेय, त्याज्य और भोग्य जैसा भेद बचता नहीं है। पानी से भरे कूडे में दिखते चांद के प्रतिबिम्ब को हम चांद मान बैठते हैं, पर अगर मिट्टी का वह कूडा फूट जाए, तो न पानी रहता है, न चांद। केवल शून्य भर बचा रहता है। ___ अहो, चिन्मानं! इतना ही बोध पर्याप्त है। तुम इस सूत्र को अंतरंग में उतरने दो और लीन हो जाओ अपने में, अंतरलीन। संसार स्वयं ही इंद्रजाल की भांति तिरोहित हो जाएगा। तुम देह से विदेह और जन्म-मरण से उपरत हो जाओगे। 62 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003867
Book TitleNa Janma Na Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2003
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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