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पाप नहीं है, पाप है मूर्च्छा, पाप है आसक्ति । अनासक्त सदा पुण्य में जीता है। अनासक्त धन का उपयोग करते हुए भी, सिंहासन पर आसीन रहकर भी मुक्त है।
एक ज़ेन संत हुए- जेस्सीन । जेस्सीन पेंटिंग किया करते और उसके एवज में मोटी रकम लिया करते थे । वे समर्पित पेशेवर पेंटर थे। एक बार एक युवती उनके पास पहुंची और कहने लगी- मुझे चित्र बनवाना है, मगर शर्त यह है कि आपको वह चित्र मेरे सामने बनाना पड़ेगा। जेस्सीन ने कहा- ठीक है, मुझे कोई दिक्कत नहीं । उन्होंने एक दिन तय किया और उस दिन जेस्सीन ने चित्र बनाना शुरू कर दिया। जैसा चित्र वह चाहती थी, वैसा चित्र बनाकर दे दिया गया और बदले में वांछित राशि ले ली। राशि देकर युवती आगे बढ़ गई। कुछ दूर जाकर वह पलटी और जेस्सीन के पास आकर कहा- पेंटर, तुम्हारी कला में तो दम है, लेकिन हो तुम लालची व्यक्ति । तुम पैसे के लिए पेंटिंग करते हो, यही सबसे बड़ी खामी है । फिर न जाने उसने क्या सोचा और अपना स्कर्ट खोलकर जेस्सीन की तरफ फैंक दिया और कहा- तुम इस पर पेटिंग बनाओ, तो जानूं।
जेस्सीन ने युवती की चुनौती बड़ी विनम्रता से स्वीकारते हुए कहा- मुझे इस पर भी पेंटिंग करने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसकी राशि अभी जितनी दी है, उससे आठ गुना होगी। युवती तैयार हो गई । जेस्सीन ने कुछ ही पलों में पेंटिंग बनाकर स्कर्ट उसे सौंप दिया। युवती राशि पटक कर घृणित भाव से वहां से चली गई ।
युवती बाजार में पहुंची, तो उसे जेस्सीन के बारे में चर्चा सुनने को मिली। उसे जो जानने को मिला, उसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। उसने जाना कि जेस्सीन केवल धन के लिए ही पेंटिंग करता है, मगर वह धन स्वयं के लिए नहीं कमाता । उसकी धन कमाने की तीन वजहें हैं- पहली, जहां वह रहता है, वहां अन्न का बहुत बड़ा भंडार है, जिसका उपयोग वह असहाय - गरीबों के लिए करता है । इस अन्न-भंडार का संचालन इसी पेंटिंग के पैसे से होता है । दूसरी, वह अपनी पेंटिंग की कमाई से जापान के सबसे बड़े मंदिर तक पक्का रास्ता बनवा रहा है। और तीसरी वजह यह है कि वह अपने स्वर्गीय गुरु की इच्छा के अनुरूप एक मंदिर बनवाना चाहता है। कहा जाता है कि जिस दिन उसकी तीनों इच्छाएं पूरी हो गईं, वह जंगलों में चला गया, उसे किसी ने पेंटिंग करते नहीं देखा ।
जीवन में जो कुछ करना था, धन का उसके लिए उपयोग किया गया । आत्मसमृद्ध व्यक्ति हीरे - कंकड़ के जोड़-तोड़ में नहीं लगता । जो भीतर से दरिद्र है, वही बाह्य वस्तुओं के संग्रह में रस लेता है । वही धन, पद, प्रतिष्ठा, मान, सम्मान की फिराक में रहता है। संतोषी और अनासक्त व्यक्ति धन का वैसा ही उपयोग और वितरण
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