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तुम्हें लगता है कि तुम्हारे भीतर क्रोध, अहंकार और द्वेष की ग्रथियां हैं, वासना और विकार की ग्रंथियां तुम्हें परेशान करती हैं, तो तुम कब तक पलायन करते रहोगे? जब भी भीतर झांकोगे, यह सब प्रतिबिंबित होगा ही। बहुत हो गया बाहरी पढ़ना। अब तो हमें अपनी ही आत्मकथा पढ़नी होगी। ध्यान में बैठकर अपने ही भीतर देखो कि हमारे विचारों में क्या-क्या कचरा उमड़कर आता है। अच्छा या बुरा-जो भी विचार मन में आए उसे एक पन्ने पर लिखते जाओ। ईमानदारी से दो सप्ताह तक यह लिखते जाओ। फिर पंद्रह दिन बाद अपनी इस आत्मकथा को पढ़ो। वह आत्मकथा गांधी की आत्मकथा से कहीं अधिक उपयोगी साबित होगी। वह तुम्हारे जीवन में नवीन क्रांति का सूत्रपात करेगी, परिवर्तनों की पुरवाई लेकर आएगी। नए जीवन का सूत्रपात होगा।
यह मत समझो कि अष्टावक्र वक्ता थे, तो जनक वहां केवल श्रोता भर थे। सुनने वाले तो अष्टावक्र को बहतेरे मिले होंगे, बहुतेरे मिल जाते, क्योंकि श्रोताओं की कमी न तब थी और न अब है। श्रोता कई किस्म के होते हैं-एक, जो सुनते-सुनते सोते हैं; दूसरे, जो सुनते-सुनते सरोते-सा व्यवहार करते हैं कि कब-कैसे-किस बात को काटा जाए; तीसरे, जो वास्तव में सुनते हैं, लेकिन सुनते भर हैं; चौथे, जो सुनने के साथ-साथ मनन भी करते हैं और पांचवें, वे श्रोता, जो सुनते-सुनते उसको भी सुनने लग जाते हैं, जो सुनने वाला है और जनक ऐसे ही श्रोता थे। मुक्त भाव से ग्रहण करने वाले ऐसे सुपात्र श्रोता दुर्लभ हैं, तो मुक्त हृदय से देने वाले अष्टावक्र जैसे ब्रह्मर्षि भी नसीब से मिलते हैं। यह अनूठा संयोग, अनुपम उपक्रम हुआ और राजा जनक ने कहा-अहो, मैं निरंजन हूं; निर्दोष हूं। __आदमी दोषी तभी तक है, जब तक वह स्वयं को दोषों से युक्त मानता है। जिस पल यह आत्मबोध जग गया कि मैं निर्दोष हूं, तो फिर पाप तुम्हें स्पर्श नहीं कर पाएंगे। जब तक आत्मबोध नहीं जगा, तब तक पाप हैं, प्रायश्चित है, पापों की पुनरावृत्ति है। फिर यहां निष्पाप कौन है! कौन है, जिसने कभी पाप नहीं किया! जीसस के सामने एक महिला को पीटते हुए भीड़ पहुंची तो जनता ने जीसस से कहा कि इस महिला ने व्यभिचार किया है। इसे मारने का आदेश दीजिए। जीसस ने केवल इतना ही कहा कि इस महिला को मारने का अधिकार हर उस व्यक्ति को है, जिसने कभी पाप न किया हो। केवल वही आदमी आगे आए और इस महिला पर पत्थर फेंके।
कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा, जिसने मन में भी कभी पाप न आचरा हो, लेकिन हम केवल अपने जीवन में पापों का प्रायश्चित न करें। सीधा-सा सूत्र है, अंधकार को दूर करना। अंधकार, जो कभी अंधकार से दूर नहीं होगा। अंधकार हमेशा प्रकाश से ही दूर होगा। अंधेरे में एक जलता चिराग चाहिए। जीवन में
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