________________
पटल है-काया के प्रति ममत्व की। तुम किस-किस से उभरोगे, किस-किस को त्याग पाओगे? त्याग के नाम पर एक समय का भोजन और कुछ धन का त्याग कर देने मात्र से बात नहीं बनेगी। अपने आपको केवल बाह्य क्रिया-कांडों में मत उलझाओ, क्योंकि ये सब चीजें चर्मदृष्टि हैं और आत्मदृष्टि में तो केवल एक ही सूत्र काम आता है-मैं ये सब कुछ नहीं हूं। जब मैं ये सब चीजें हूं ही नहीं, तो फिर किसका त्याग करूं, किसे ग्रहण करूं! या तो सारा संसार मेरा है या फिर संसार का कोई भी तत्त्व मेरा नहीं है।
संत तोयो के जीवन की एक बहुत प्यारी सी घटना है। घटना उनके बचपन की है, जब वे संत मुकराई के शिष्य थे। संत मुकुराई के पास कई दिग्गज विद्वान-शिष्य पढ़ने के लिए आया करते थे। वे वहां ध्यान-योग, मुक्ति-वैराग्य का अभ्यास करते। एक दिन बाल संत तोयो ने अपने गुरु मुकुराई से कहा-भंते, मैं भी उस समाधि को पाना चाहता हूं, जिसका ज्ञान आप दूसरों को दिया करते हैं। मुकुराई ने कहा-तोयो, अभी तुम बहुत छोटे हो । थोड़े बड़े हो जाओ, फिर बताऊंगा, मगर तोयो ने अत्यंत आग्रह किया कि भंते, मुझे भी इस महामार्ग पर चलने का अवसर दें, तब संत मुकुराई ने अंततः स्वीकृति दे दी।
अगले दिन तोयो अपने गुरु के कक्ष में पहुंचा और प्रणाम करके शालीनतापूर्वक मौन होकर बैठ गया। मुकुराई ने चुप्पी तोड़ी और कहा-तोयो, तुमने अब तक उस ताली की आवाज तो सुनी होगी, जो दोनों हाथों के संयोग से ही बजती है। अब तुम खोज करो, उस ताली की जो एक हाथ से बजती हो, एक हाथ से उत्पन्न आवाज! तोयो यह सुनकर चकित था, फिर भी उसने सहर्ष स्वीकृति दे दी और वहां से चला गया।
तोयो अपने कक्ष में पहुंचा, तो उसे वाद्ययंत्र का स्वर सुनाई दिया। यह एक हाथ से बजने वाला वाद्ययंत्र था। उसके चेहरे पर खुशी छलक आई। उसे उम्मीद नहीं थी कि अपनी समस्या का समाधान इतनी जल्दी मिल जाएगा। अगले दिन वह गुरु के पास पहुंचा और वह वाद्ययंत्र बजाकर सुनाया। गुरु ने कहा-नहीं, वाद्ययंत्र नहीं। और खोज करो। तोयो नए उत्साह से फिर उसी काम में जुट गया।
तोयो ध्यान में बैठा था। तभी उसे कहीं से पानी की बूंदों के टपकने की आवाज सुनाई दी। वह दौड़ा-दौड़ा गुरु के पास पहुंचा और वृत्तांत बताया, मगर गुरु ने इंकार कर दिया। फिर उसने हवा की सरसराहट, टिड्डी-समूह के उड़ने से उत्पन्न आवाज और भी न जाने कितनी-कितनी आवाजों की जानकारी गुरु मुकुराई को दी, लेकिन हर बार गुरु ने मना कर दिया।
16 For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org