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आपका घमण्ड त्यागने जैसा है।
4. किसी भी कार्य को भारभूत मत समझिये। उत्साह-भाव से किया गया कार्य ही स्वर्ग का प्रथम द्वार होता है और बेमन से किया गया कार्य ही बंधन की बेड़ी बन जाता है।
5. अपने तनाव, निराशा और चिन्ता के बोझ को उतार किये और जीवन में शान्ति, विश्वास, उत्साह और ऊर्जा का संचार कीजिए। दर्पण में आखिर वैसा ही चेहरा दिखाई देता है, जैसी हमारी मन:स्थिति होती है।
6. कर्त्तव्यों का पालन कीजिए । कार्य और कर्त्तव्य जीवन-पथ के देवदूत हैं । भौतिक सुख, जिसके पीछे हम दौड़ रहे हैं, चापलूस शत्रु हैं। स्वार्थ और भोग-विलासिता का त्याग करके इन्द्रियों की आसक्ति से ऊपर उठिये। भीतर की पशुता के क्षीण होने पर ही जीवन में दैवीय गुण प्रकट होते हैं।
7. दूसरों की हमेशा मदद कीजिए। ईश्वर हमें उतनी लाख गुना मदद करते हैं जितनी हम किसी दीन-दुःखी की मदद किया करते हैं।
ये संकेत हमारे लिए स्वर्ग का रास्ता प्रशस्त करते हैं और नरक की आग में गिरने से हमें बचाते हैं। भला जब स्वर्ग आपके हाथ में आ सकता है तो हम नरक के कीचड़ में क्यों गिरें । जीवन को इस तरह जिएँ कि जब तक जिएँ तब तक स्वर्ग हमारी हथेली में हो और जब नश्वर शरीर का त्याग करें तो आत्मा में मुक्ति का महोत्सव हो।
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