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________________ है। भीतर में स्वर्ग के स्रोत हैं, उन्हें उपलब्ध करना धर्म है। अभी स्वर्ग, तो बाद में स्वर्ग; अभी नरक, तो बाद में भी नरक। स्वर्ग और नरक कोई भौगोलिक परिवेश नहीं हैं, ये मन की अच्छी और बुरी परिणति के नाम हैं। हर मनुष्य पतित से पावन हो सकता है, शैतान से देवता बन सकता है, नर से नारायण हो सकता है। सरलता, प्रसन्नता, आत्मीयता, प्रामाणिकता और निर्भीकता - ये पाँच गुण मनुष्य को देवत्व की ओर अग्रसर करते हैं। वस्तुतः हमारे आचार-विचार पर सात्त्विक और दैवीय गुणों का साम्राज्य होना चाहिए। हम सदा उस प्रेम से प्रेरित रहें जो आत्मा को आत्मा का सुख और साहचर्य प्रदान करें। अन्तरात्मा की दिव्यता ही मनुष्य को देवता बनाने का सहज सरल सूत्र है। कैसे जिएँ हम स्वर्ग को, कैसे बचें हम नरक से, इसके लिए लें हम सात अमृत सूत्र - __ 1. क्रोध से बचिए। स्वर्ग उनके लिए है जो अपने क्रोध को अपने वश में रखते हैं और गलती करने वालों को माफ़ कर देते हैं। ईश्वर उन्हीं से प्यार करता है जो दयालु और क्षमाशील होते हैं। 2. सबके साथ प्रेम और सम्मान से पेश आइए। आखिर हमें उसी व्यवहार का सामना करना पड़ता है, जैसे हम अपनी ओर से बीज बोते हैं। हमें औरों से उतना ही प्रेम और सम्मान मिलेगा जितना हम अपनी ओर से दूसरों को देंगे। 3. सबके साथ विनम्रता से पेश आइए। किसी मृदु और विनम्र व्यक्ति से अपनी तुलना करके देखिए, आपको पता चल जाएगा कि 32 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003866
Book TitleDharm me Pravesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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