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________________ भीतर वास्तव में मौन साकार होने लगा है। कोशिश करें, महीने में एक दिन पूरे मौन रहें। जैसे शरीर-शुद्धि के लिए महीने में एक उपवास किया जाता है, आप एक दिन पूरा मौन रखें। संभव हो सके तो कभी एक सप्ताह के लिए मौन रखें। धीरे-धीरे आप पाएँगे कि मानसिक द्वन्द्व शांत होना शुरू हो गया है। मन की शांति में आत्मा की शक्ति अधिक महसूस होती है। एक बात और अपनाएँ कि प्रतिदिन सुबह और प्रतिदिन सायं आधा घण्टा ध्यान का अभ्यास करें। ध्यान से मौन, शांति और आत्मजागरूकता का और अधिक विकास तथा विस्तार होगा। ध्यान में करने के नाम पर कुछ न करें। बस, शांत स्थिर हो जाएँ, स्वयं को एकाकी देखें। शरीर, मन और इंद्रियाँ - सबको शांति और मौन की प्रेरणा देते हुए स्वयं को ईश्वरीय भाव में स्थापित करें। सचमुच आपको यह देखकर आश्चर्य होगा कि आपकी शांति और संभावना अनन्त हो चुकी है। ध्यान-विधि के लिए प्रथम चरण : लगभग 10 मिनट तक दीर्घ श्वास का प्राणायाम करें। चित की स्थिरता के लिए साँस के साथ सोहम् का सुमिरन करें। धीरे-धीरे साँस स्वतः छोटी, हल्की और विलीन होती जाएगी। दूसरा चरण : अपने हृदय-कमल में दिव्य शांति और अपनी अन्तरात्मा का ध्यान करें। लगभग 10 मिनट तक ध्यान विधि के दूसरे चरण में डूबे रहें। तीसरा चरण : ललाट प्रदेश पर अपनी आत्म-जाग्रति साधे । यहाँ ध्यान धरने से हमारे दिव्य चक्षु सक्रिय होंगे, बुद्धि एकाग्र और निर्मल होगी। यहाँ हमें दिव्य चमक और दिव्य रंगों की अनुभूति होगी। चतुर्थ चरण : अंत में मस्तष्क के मध्य ऊपरी केन्द्र अर्थात् ब्रह्मरंध्र | 103 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003866
Book TitleDharm me Pravesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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