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हृदय की ओर बढ़ें, हृदय को खोलें। अन्तस्-आकाश को खोज लिया जाए तो आत्म-स्वतंत्रता के पंछी मुक्त विहार कर सकते हैं। तब ऐसे अहोभाव में जीना होता है जिसमें सबको समाविष्ट किया जा सकता है। ___ मृत्यु हमें मिटाए, उससे पहले, हम मृत्यु से जुड़े पहलुओं को मिटा डालें ताकि मृत्यु नहीं, मुक्ति हो । मृत्यु भी निर्वाण का महोत्सव हो। ज्योति का परम ज्योति में विलय हो।
तमसो मा ज्योतिर्गमय... असतो मा सद्गमय...
मृत्योर्मा अमृतं गमय... हे प्रभु! मैं अन्धा हूँ, दृष्टा बनाओ। भ्रमित हूँ, अमृत बनाओ। बूंद हूँ, सागर बनाओ।मुझे अपनी शांति और मुक्ति की राह दिखाओ।
O My God! I am only a drop, make me an ocean.
मेरे प्रभु ! मैं तो केवल एक बूंद भर हूँ, सागर बनाओ तो तुम्हारी कृपा!
हम ध्यान में उतरें, ध्यान को जीएँ। अस्तित्व हमें सहज ही अपने प्रकाश और पुरस्कारों से भर देगा। ___ हम अपनी शांति, शुद्धि, मुक्ति के लिए पहला तरीका यह अपनाएँ कि हम अपने साथ मौन के अभ्यास को जोड़ें। दिन में दो घण्टे ही सही, हम मौन-भाव को अपने से जोड़ें। उस दौरान न किताब पढ़ें, न अखबार और न ही रेडियो या टेलीविजन का उपयोग करें। मौन यानी वाणी का ही मौन नहीं, इंद्रियों का भी मौन, मन का भी मौन । कुछ दिन तक यह भले ही अटपटा लगे, पर धीरे-धीरे आप पाएँगे कि आपके
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