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भरा रहना है।
किसी ने पूछा, 'क्या, तुम एक साथ अडसठ तीर्थों का नाम बता सकते हो?' मैंने कहा, 'क्या तुम्हें अब तक किसी ने बताया है ? उसने कहा, अभी तो किसी ने नहीं। मैंने कहा, तो सुनो, मैं तो तुम्हें अड़सठ तीर्थों के नाम बताता हूँ उसमें न एक कम होगा और न एक ज्यादा। सदा मस्त रहो - इस बात में ही दुनिया के सारे अड़सठ तीर्थ समाये हुए हैं । आनंद ही अड़सठ तीर्थ है। सदा प्रसन्न रहना ही ध्यानमूलक जीवन की अभिव्यक्ति है। हम सदा मुस्कराते रहें। चाहे मान हो या अपमान, कोई गाली दे या गीत गाये, कभी नुकसान हो जाये या फ़ायदा, हमारी मुस्कान नहीं टूटनी चाहिये। हर परिस्थिति में, हर निमित्त में हमारे चित्त की प्रसन्नता बरकरार रहे। मस्ती ही वास्तव में मुक्ति है। कबीर ने गाया है
मन लागो मेरो यार फकीरी में॥ जो सुख पायो राम भजन में, सो सुख नहीं अमीरी में। भलो बुरो सबकी सुन लीजे, कर गुजरान गरीबी में । प्रेम नगर में रहनि हमारी, भली बनी आई सबूरि में। हाथ में लोटा, बगल में सोटा, चारों दिसि जागिरी में ॥ आखिर यह तन खाक मिलेगा, कहाँ फिरत मगरूरी में। कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहब मिले सबूरि में।
यह फ़क़ीरी क्या है? मस्ती। हर हाल में मस्ती। जन्म-मरण, दोनों में मस्त। मिलन हो या वियोग, दोनों में मस्ती।
मस्ती यान फ़क़ीरी, फ़क़ीरी यानी मस्ती। हृदय की मस्ती में जो अमीरी है वह दौलत की अमीरी में नहीं है। पद कहता है ‘साहब मिले सबूरी में, इसलिए दूसरी बात यह ध्यान में रखें कि सब्र चाहिये, धीरज चाहिये। अनंत के मार्ग की ओर कदम उठाया है तो धैर्य भी अनंत चाहिये। जल्दबाजी यहाँ काम न देगी। धीरज ही सुखद परिणाम देता है। पत्थर हो तो उसे जल्दी में घिसा भी जाता है, पर बीज में से फूल तो धीरज से ही खिल पाएगा। बीज बोना हमारा काम है, उसे सींचना हमारा काम है, उसमें से कलियाँ और फूल खिलाना प्रकृति का दायित्व है। धीरज न धरा, तो बात
३६ / ध्यान का विज्ञान
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