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________________ चरण पोंछा करते थे। कितना माधुर्य है मनुष्य के इस प्रेम में, इस प्रणाम में, इस पूजा में ! हृदय से जन्मे प्रेम का ऐसा ही कोई प्रगट रूप होता है । जीवन में प्रेम हार्दिक हो, हृदय से जन्मा हो, ध्यान से जन्मा हो । ध्यान की गहराई से जन्मा प्रेम जीवन की सुवास है, जीवन का नवनीत है। सच तो चह है कि व्यक्ति जितना ध्यान में डूबता जाता है, वह अपने को उतना ही प्रेमपूर्ण पाता है । उसके प्रेम में विकार की बू नहीं होती । वह प्रेम तो ध्यानस्थ होता है । यों हम हृदय में उतरेंगे तो सूना लगेगा। पर जब हृदय में बैंठेगे तो हृदय में एक ऐसी अन्तर् - हिलोर उठती पाएँगे जिसे हम ध्यान से जन्मा प्रेम कहेंगे । महावीर की अहिंसा और बुद्ध की करुणा में ऐसे ही प्रेम की रसधार बही है। ध्यान से प्रेम जन्मता है; प्रेम ध्यान की ओर ले जाता है । प्रेम यदि चेतनामय और आत्ममय है, हृदय से संबंधित है, तो वह प्रेम हमें ध्यान की ओर ले जाएगा, जीवन - मैत्री और विश्व मैत्री का सुख देगा । सम्यक् दिशा की ओर बढ़ा हुआ प्रेम ध्यान का ही महत्त्वपूर्ण पहलू है। स्वार्थ और वासना से जुड़ा प्रेम, प्रेम नहीं वरन् प्रेम के नाम पर मन में विकृत नाले का प्रवाह है, मन से गंदे नाले का बहना है । ऐसा प्रेम तो मनुष्य को सुख की बजाय उत्तेजना देता है । शांति की बजाय कलह-क्लेश देता है। मिलन की बजाय खींचातानी का कारण बनता है । यह प्रेम तो तृष्णा और कामनाओं का मकड़जाल रचता है। आदमी उलटा मानसिक तनाव और शारीरिक थकान से घिर जाता है । यह प्रेम, प्रेम नहीं जीवन की समस्या है। यह मानवीय नहीं, मनुष्य में रहने वाली पशुता है, पाशविकता है। प्रेम है वह, जो हमें शाश्वत की झलक दे । प्रेम है वह, जिसमें पर का निमित्त गौण, स्वयं की खिलावट और छलछलाहट ही मुख्य है । दूसरा गौण होता है, क्योंकि व्यक्ति स्वयं ही प्रेमपूर्ण हो जाता है । व्यक्ति स्वयं प्रेम हो जाता है । एक ऐसे हृदय का प्रेम या यों कहें कि एक ऐसे प्रेम का हृदय जिसमें भगवान का निवास है । हृदय जीवन का क्षीर सागर है, जिसमें अंतर्यामी का बसेरा है। हृदय एक ऐसा मानसरोवर है, जिसमें प्रेम Jain Education International ध्यान के जीवन - सापेक्ष परिणाम / २३ www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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