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अभी हमें और गहरे उतरना होगा। ध्यान पर ध्यान दें, ध्येय को आँखों में बसाएँ, अस्तित्व के, स्वयं के, आत्म-शक्ति के गहरे सत्य स्वतः प्रत्यक्ष होंगे। हम पर प्रेम, शांति, करुणा, आनन्द और मुक्ति की अहर्निश आठों याम रसधार झरेगी।
___ ध्यान के परिणाम सहज हैं। मनुष्य के मन में वृत्तियों के भँवर और विचार-विकल्पों के तूफान मँडराते रहते हैं। जब तक व्यक्ति इस भँवरजाल और तूफान से बाहर नहीं निकल पाता है, वह शांति और आनन्द के धरातल पर विहार नहीं कर सकता। ध्यानयोग मन की खटपट को शान्त होने का अवसर प्रदान करता है। मन की शांति ही आगे के द्वारों को खोलती है। मस्तिष्क की उच्च शक्ति को जाग्रत और सक्रिय करती है। शान्त मन, प्रसन्न हृदय और प्रखर ज्ञान ध्यान के सहज-सरल परिणाम हैं। ___हर मनुष्य के मन में प्रिय और अप्रिय की संवेदनाएँ, अपने और पराये का भेद तथा हीनता और महानता की ग्रन्थियाँ बनी रहती हैं। ध्यान प्रिय और अप्रिय, स्व और पर, हीन और महान् की भेद-रेखाओं को मिटाता है। वह मनुष्य को नेक और प्रामाणिक मनुष्य बनाता है, विवेक की ज्योति
और सदाबहार शांति तथा आनन्द को बरकरार रखता है। समता-सामायिक उसके जीवन की पर्याय बन जाती है। आरोपित व्यक्ति की बजाय सहज व्यक्ति का जन्म होता है। परिस्थितियों से संतुलित समायोजन की कला का वह स्वामी होता है। संकीर्णताओं के दायरों से मुक्त होकर वह विराट दृष्टि, सौम्य व्यवहार और जीवन-शुद्धि का संवाहक बनता है।
यदि ध्यान का गुर हाथ लग जाये, मूल बात समझ में आ जाये, तो मनुष्य जीवन के मानसरोवर में हंस-विहार करने लग जाये। जिसने भी अब तक ध्यान का एकनिष्ठ भाव से प्रयोग किया, ध्यान की गहराई में डूबा, वह कृतकृत्य हुआ, धन्य हुआ, आनन्द और अहोभाव से अभिभूत हुआ। उसके साक्षित्व में शिवत्व उतरा।
___ध्यान-मार्ग पर आप आगे आयें; आपका स्वागत है। मन नहीं लगता है तो ध्यान लगाएँ। जिनका ध्यान सहज लगता है, वे विधि-सापेक्ष न रहें। विधि प्रवेश के लिए है, एकनिष्ठ बनने का प्रयोगभर है। ध्यान बहुत सहज है। इसे हम ‘कठिन' न बनाएँ। ध्यान को बहुत
ध्यान : विधि और विज्ञान / १०९
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