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________________ 46 ध्यानःसाधना और सिद्धि हमारे जीवन में भी किसी प्रकार की कमी है, किसी तरह की विकृति या असद् तत्त्व है तो दोष उन जड़ों तक जाएगा जिन्हें हिलाए बिना, जिन्हें मिटाए बिना, जिन्हें तोड़े बिना जीवन का विष और कालुष्य तिरोहित नहीं हो सकता । जिन्हें यह मूल बात समझ में आ गई, उनके जीवन में अध्यात्म की शुरुआत हो गई। उनके जीवन में अध्यात्म की अभीप्सा की लौ सुलग गई, वह जाग गया। जागृत चेतना का व्यक्ति जो करेगा, धर्म उसकी छाया होगी । वह जैसे चलेगा, धर्म उसका आचरण होगा। फ्रायड ने एक प्यारी-सी कहानी कही है कि एक ग्रामीण व्यक्ति शहर में पहुँचा और एक खूबसूरत होटल में ठहरा । मन में बहुत खुश था कि आज तो चैन की नींद मिलेगी। आराम से सोऊँगा, सुबह देर तक सोया रहूँगा । गाँव में तो सुबह जल्दी उठना पडता है, यहाँ तो कुछ काम भी नहीं है । गाँव की बातें सोचते-सोचते रात घिर आई, नींद भी आने लगी और वह बिस्तर पर लेटा । लेकिन पाया कि कमरे में बहुत रोशनी है और इतने उजाले में तो वह सो नहीं सकता । वह उठा और रोशनी के पास पहुँचकर रोशनी को फंक लगाई कि रोशनी बझ जाए। रोशनी नहीं बुझी, उसने फिर जोरदार फॅक लगाई, पर बेकार । बहुत देर तक फंकों से रोशनी बुझाने की कोशिश की, लेकिन सब निरर्थक, रोशनी बुझने का नाम ही न लेती थी । लालटेन और दीपक फूंक से बुझाने का अभ्यासी था, सो फूंक लगाता रहा, पर रोशनी न बुझनी थी, सो नहीं ही बुझी। सुबह होते ही होटल मैनेजर के पास पहुँचा और शिकायत की कि यह कैसी रोशनी थी जो सैकड़ों फूंक लगाने के बाद भी नहीं बुझी । रात भर करवटें बदलता रहा, एक पल को भी न सो सका। मैनेजर समझ गया । बोला, महानुभाव यह दीपक नहीं विद्युत का बल्ब है। यह फूंकों से नहीं, योग्य तरीके से बुझता है । फूंक तो बेअसर रहेंगी ही। इस घटना को हम अपने जीवन के साथ जोड़ें कि क्या हवाई फूंकों से दावानल बुझता है? क्या कोरे क्रियाकांडों से अन्तरहृदय का रूपान्तरण होता है ? विकारों से मुक्ति हो सकेगी? जिससे चित्त में सौम्यता, सौमनस्यता, सौहार्दता आती है, वही मार्ग धर्म है, महज फंकों के द्वारा जीवन में परिवर्तन नहीं होगा। योग्य माध्यम चाहिए, योग्य तरीका, योग्य विधि चाहिए स्वयं के अन्तःकरण में प्रवेश पाने के लिए। योग्य वैज्ञानिक विधि/मार्ग से भीतर उतरकर ही हम अचेतन मन का परिमार्जन कर सकते हैं। संबोधि-ध्यान अन्तःकरण में उतरने का ही उपक्रम है । धीरे-धीरे ही सही, हम उन तलों तक पहुँच जाएँगे, उन जड़ों तक पहुँच जाएँगे जहाँ असद् प्रवृत्तियों का साया जमा हुआ है। हम सभी ध्यान के योग्य मार्ग के द्वारा, योग्य तरीके के द्वारा अपने अन्तःकरण में प्रवेश के साथ अपने भीतर छिपे हुए असत् तत्त्वों को पहचानें, उनसे अलग होने का दृढ़ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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