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साक्षीभाव ही साधना का गुर
कि क्या रोगों को छोड़ना उसके बस में है ? ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है कि क्या असद् वृत्तियों और प्रवृत्तियों को पलक झपकते छोड़ देना हमारे हाथ में है ? किसी के कहने से क्या कोई क्रोध छोड़ता है, संसार छोड़ता है, मोह माया ममता छूटती है किसी से? भीतर की तह तक पहुँचे बगैर असत् से मुक्ति नहीं है, जहाँ कि असत् की, तमस् की परतें जमी हैं। हमारी दविधा यह है कि हम चेतन मन के बारे में तो फिर भी कुछ-न-कुछ जानते हैं, लेकिन अवचेतन और अचेतन मन, भीतर छिपे हुए चित्त के बारे में, जिस पर कालिख जमी हुई है, कचरा पड़ा है, उसके बारे में हम अनभिज्ञ हैं । यह चित्त मनुष्य को बार-बार उन्हीं संवेगों में, उद्वेगों में, उत्तेजनाओं में, उन्हीं वृत्तियों में बहाकर ले जाता है । व्यक्ति मन के बहाव में, मन के बहकावे में उम्र भर बहता चला जाता है। मेरे देखे, मन की स्थिरता ही ध्यान है । चित्त की निर्मलता ही परम आनन्द की आधारशिला है । चित्त के संस्कारों और दमित वृत्तियों से मुक्त और निरपेक्ष हो जाने वाला ही सच्ची सुखशांति का स्वामी बनता है।
____ मैं उन सभी धार्मिक लोगों से विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूँ कि जब तक हमारी अन्तर-ग्रंथियों की चूलें न हिलेंगी, हमारे व्रत, उपवास, पूजा-पाठ के नियम व्यर्थ हो जाएँगे। ऊपर से कभी दो उपवास कर लो, दो पत्ते पेड़ के टूट भी गए तो क्या फर्क पड़ा। ऊपर से कभी दो घंटे मौन का संकल्प भी ले लो, एक डाली पेड़ से तोड़ लो कोई फर्क न पड़ेगा। जब तक जड़ों तक नहीं पहुँचेंगे, जब तक बीज तक नहीं पहुँचेंगे, तब तक रोज-ब-रोज तोड़े हुए पत्तों का कोई अर्थ न होगा, ये पत्ते फिर-फिर लग जाएँगे। कभी क्रोध का पत्ता, कभी विकार का पत्ता, कभी अहंकार का पत्ता, ये फिर-फिर उग जाएँगे। फल अगर कड़वा है तो जड़ें भी कड़वी होंगी। मधुर फल पाने के लिए जड़ों का मधुर होना जरूरी है।
एक व्यक्ति रेगिस्तान से गुजर रहा था। भूख लग आई थी। पास में खाने को कुछ न था। तभी उसे एक वृक्ष दिखाई दिया। उसने सोचा चलो इसके पत्तों को खाकर ही अपनी क्षुधा शांत कर लेता हूँ । वह वृक्ष के पास पहुँचा, कुछ पत्ते तोड़े और चबाने लगा, पर तुरंत ही थूक दिया, क्योंकि पत्ते कड़वे थे। उसने डाली तोड़कर रस चूसने का प्रयास किया, लेकिन वह तो पत्तों से अधिक कड़वी थी। उसने फल को तोड़कर खाया, लेकिन यह तो जीभ पर भी न रखा जा सका, इतना कड़वा !:उसने सोचा जरूर इसकी जड़ें भी कड़वी होंगी। उसने पेड़ उखाड़ डाला, जड़ों में जहर घुला हुआ था। जहाँ जड़ों में ही कड़वापन है, वहाँ उन जड़ों से निकलने वाली हर शाखा, हर पत्ता, हर फूल, हर फल कड़वा ही होगा।
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