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________________ विचार-शक्ति का विकास ४१ सोच-विचार के प्रति बड़े सजग हों, क्योंकि वह हमारा कच्चा उत्पादन है। भीतर का उत्पादन सही हो इसके लिए हम सजग हों। दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके पास विचार करने की क्षमता नहीं होती है । वे कोई अनपढ़ और गँवार नहीं होते, वरन उनकी चेतना पर अज्ञान और मूर्छा के अंधेरे घने आवरण आ जाते हैं, जिसमें उनकी विचार शक्ति कार्य नहीं करती। सभी मनुष्यों के मस्तिष्क एक जैसे होते हैं, लेकिन विकास-प्रक्रिया में अन्तर होता है । तमस के जितने सघन आवरण होंगे, विचार करने की शक्ति उतनी ही क्षीण और शिथिल होगी। तमस् ज्यों-ज्यों कम होगा, विचार-शक्ति उतनी ही अधिक विकसित और प्रखर होगी। ध्यान हमारे विचारों का ऊहापोह तो शांत करता है, किंतु विचार करने की शक्ति प्रदान करता है । विचार-शक्ति की उपलब्धि ध्यान का परिणाम है और विचारों के ऊहापोह का शमन, विचारों की अनर्गलता का विरेचन ध्यान का प्रतिफल है । ध्यान विचार करने की शक्ति को समाप्त नहीं करता, बल्कि जो विचार, वृत्ति और विकल्प बनते हैं उस उच्छंखलता को लगाम देता है । ध्यान का कार्य मनुष्य को वृत्ति और विकल्प के वात्योचक्र से मुक्त करना है। विचार तो जीवन का वैभव और वरदान है। लेकिन विचार ही मानव-जीवन के उत्ताप और संत्रास का तब कारण बन जाते हैं, जब वह विकल्प और वृत्ति की खटपट से घिर जाता है। विचार-विकल्प पर हमारा नियंत्रण न हो, तो अनियंत्रित विचार व्यक्ति के लिए चिंता, तनाव और घुटन का कारण बन जाते हैं । तुम अपने विचारों को एक बिन्दु की ओर केन्द्रित कर दो, तो वही एकाग्रता बन जाता है। मोमबत्ती की तरह झिलमिलाते विचार तो हवा के एक छोटे-से झोंके से भी बुझ जाते हैं। उनका कोई अस्तित्व नहीं। तुम व्यर्थ में ही सोचते मत रहो । अपने भटकते विचारों को रचनात्मक मोड़ दो। तुम उन्नत मस्तिष्क और उच्च विचारों के स्वामी बनो । ध्यान को तम मस्तिष्क को ऊर्जस्वित करने में लगाओ, हृदय के द्वारों को खोलने में लगाओ, अपनी जन्म-जन्म की मूर्छा को तोड़ने में लगाओ। ध्यान, जिसके द्वारा तुम्हें एक काम कर ही लेना चाहिए, वह है अपनी मूढ़ता के कोहरे को हटाना, मूढ़ता को समझना और मूढ़ता से मुक्त होना। जिनके पास विचार करने की क्षमता नहीं होती वे मूर्ख नहीं, मूढ़ होते हैं । मूर्ख व मूढ़ में अंतर है । मूर्ख वह है जो अनपढ़ व गँवार है, कुछ समझता नहीं, कहने पर भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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