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विचार-शक्ति का विकास
मेरे प्रिय आत्मन्,
मनुष्य स्वयं के कारण ही सुखी या दुखी है । अपने जीवन के समस्त सुखों और दुखों के लिए मनुष्य ही उत्तरदायी है। यह उत्तरदायित्व हम ईश्वर के कंधों पर रखें या नियति के कालचक्र पर या इसका दोष कर्म के मत्थे चढ़ें या किसी अन्य को दोषी बनाएँ, लेकिन जीवन का सत्य यह है कि व्यक्ति जैसा है, अपने ही कारण है । अगर कर्म है तो वह भी मनुष्य की ही अपनी देन है, समय है तो उसके बीज भी कभी हमने ही बोए थे । नियति या प्रकृति है, तो उसका व्यवस्थापन भी हमने ही किया है । गहरा सत्य यह है कि आदमी आज जैसा है वह अपने ही कारण है । वह आज जैसा है, इसके लिए उसने पहले जरूर कभी सोचा होगा, बीज बोए होंगे ।
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हम जैसा सोचते-विचारते हैं, वैसा ही हमारा व्यक्तित्व निर्मित होता है । हमारा वर्तमान अतीत में सोचे हुए विचारों का परिणाम है । आने वाला कल आज के विचारों का परिणाम होगा। हमारा वर्तमान अतीत की पुनरावृत्ति है और भविष्य वर्तमान का खुला प्रकाशन । आज हम मन की जो स्थिति पाते हैं, वह निश्चित ही अतीत में बन चुका था । विचार ही व्यक्ति के व्यक्तित्व को आंदोलित और प्रभावित करते हैं । व्यक्ति के पास जैसी विचार की परम्परा और विचार की दिशा होगी, वैसा ही उसका व्यक्तित्व उसका जीवन, उसकी वाणी और उसका व्यवहार हो जाएगा। इसलिए अपने हर
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