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मन को मिले सार्थक दिशा
मेरे प्रिय आत्मन् ,
देख रहा हूँ मैं अपने मन को और आपके मन को भी । देख रहा हूँ अपने मन की स्थिति और उसके भाव-मौन को। साथ ही देख रहा हूँ अपने मन की स्थिति और उसकी अन्तर्दशा को, अपनी अन्तर्शक्ति और आपकी अन्तर्शक्ति को । मन बाधा भी है और मददगार भी । मन मनुष्य की कमजोरी भी है और उसके अन्दर निहित अन्तर्शक्ति भी, और जीवन का वैशिष्ट्य भी। मन के पथ पर जाकर जो रास्ते और पगडंडियाँ मिलती हैं, उनके क्षितिज संसार की ओर खुलते हैं। लेकिन जब अन्तर्शक्ति की राहों को खुलते हुए पाता हूँ तो व्यक्ति का अस्तित्व और ईश्वरत्व ही दिखाई देता है।
____ मनुष्य में निहित जीवन-शक्ति का नाम ही ईश्वर है। व्यक्ति चाहे जिस स्थिति में रहे, अपने ईश्वर से वंचित नहीं रह सकता । सदियों से और जन्मों-जन्मों से उसका ईश्वर उसके साथ रहा है । ब्रह्माण्ड का हर अणु उसकी आभा से दीप्त है । ईश्वर बाहर नहीं, हर तत्त्व में निहित उसकी प्राणवत्ता है। ईश्वर सर्वत्र है, सबमें निहित है। सारा अस्तित्व ईश्वरमय है । पराशक्ति-सम्पन्न है । मनुष्य इसलिए क्लान्त, हीन और दुःखी है, क्योंकि वह निज में निहित उस आत्मशक्ति और पराशक्ति को नजर अन्दाज कर रहा है। वह अपनी अन्तर्शक्ति और अपने आत्म-ईश्वरत्व से विच्छिन्न हुआ है। इसी का परिणाम है कि उसके जीवन में मानसिक संत्रास और व्यावहारिक तनाव व्याप्त
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